सीमांत आय क्या निर्धारित करती है
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निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए भागीदारी फर्म / एल.एल.पी. के लिए लागू विवरणी और फॉर
निर्धारण वर्ष 2022-23 के लिए भागीदारी फर्म / एल.एल.पी. के लिए लागू विवरणी और फॉर्म
अस्वीकरण : इस पेज की सामग्री केवल एक अवलोकन / सामान्य मार्गदर्शन देने के लिए है और विस्तृत नहीं है। सम्पूर्ण ब्यौरा और दिशानिर्देशों के लिए कृपया आयकर अधिनियम, नियम और अधिसूचनाएं देखें।
आयकर अधिनियम, 1961 के अनुभाग 2(23)(i) में कहा गया है कि फर्म का अर्थ भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 में दिये गये अर्थ जैसा होगा। भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 के अनुभाग 4 में फर्म को निम्नलिखित के रूप में परिभाषित किया गया है:
“जिन व्यक्तियों ने एक दूसरे के साथ भागीदारी में प्रवेश किया है उन्हें व्यक्तिगत रूप से "भागीदार" और सामूहिक रूप से "एक फर्म" कहा जाता है और जिस नाम के अंतर्गत उनका कारोबार किया जाता है, उसे "फर्म का नाम" कहा जाता है।
आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार, फर्म सीमित दायित्व भागीदारी ( एल.एल.पी.) को सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम, 2008 की परिभाषा के रूप में सम्मिलित किया जाएगा। सीमित दायित्व भागीदारी अधिनियम, 2008 का अनुभाग 2(1)(n), अधिनियम के अंतर्गत गठित और पंजीकृत भागीदारी के रूप में “सीमित दायित्व भागीदारी” को परिभाषित करती है। यह अपने भागीदार से अलग एक विशिष्ट विधिक संस्था है।
यह विवरणी एक व्यक्ति या हिंदू अविभाजित परिवार (एच.यू.एफ़.) के लिए लागू है, जो साधारणतया निवासी नहीं है या एक फ़र्म (एल.एल.पी. के अलावा) है, एक निवासी जिसकी कुल आय ₹ 50 लाख तक है और जिसकी आय कारोबार या व्यवसाय से है, जिसकी संगणना प्रकल्पित आधार पर की जाती है (धारा 44AD / 44ADA / 44AE के तहत) तथा जिसकी निम्न में से किसी भी स्रोत से भी आय है:
एक गृह संपत्ति | अन्य स्रोत (ब्याज, परिवार की पेंशन, लाभांश आदि) | ₹ 5,000 तक की कृषि-आय |
टिप्पणी: इस आई.टी.आर.-4 का उपयोग ऐसे व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता है जो:
(a) किसी कंपनी में निदेशक है
(b) पूर्व वर्ष के दौरान किसी भी समय किसी भी गैर-सूचीबद्ध इक्विटी शेयर
(c) भारत से बाहर स्थित कोई भी संपत्ति (किसी भी संस्था में वित्तीय हित सहित) है
(d) भारत से बाहर स्थित किसी भी खाते में हस्ताक्षर करने का प्राधिकार है
(e) भारत से बाहर किसी भी स्रोत से आय है
(f) वह व्यक्ति है जिसके मामले में ESOP पर कर भुगतान की राशि या कर कटौती को आस्थगित कर दिया गया है
(g) जिसके पास आय के किसी भी शीर्ष के तहत अग्रनीत हानि या अग्रानीत सीमांत आय क्या निर्धारित करती है हानि है
कृपया ध्यान दें कि आई.टी.आर.-4 (सुगम) अनिवार्य नहीं है। यह एक सरलीकृत विवरणी फ़ॉर्म है जिसका उपयोग एक निर्धारिती द्वारा अपनी इच्छानुसार किया जा सकता है, यदि वह कारोबार या व्यवसाय से लाभ और अभिलाभ को धारा 44AD, 44ADA या 44AE के तहत अनुमानित आधार पर घोषित करने के लिए योग्य हो।
यह रिटर्न उस व्यक्ति के लिए लागू होती है:
- फर्म
- सीमित दायित्व भागीदारी (एल एल पी)
- व्यक्तियों की समिति (ए.ओ.पी.)
- व्यक्तियों का निकाय (बी.ओ.आई.)
- अनुभाग 2(31) के खंड (vii) में निर्दिष्ट कृत्रिम विधिक व्यक्ति (ए.जे.पी.)
- अनुभाग 2(31) के खंड (vi) में निर्दिष्ट स्थानीय प्राधिकरण
- अनुभाग 160(1)(iii) या (iv) में निर्दिष्ट प्रतिनिधि निर्धारिती
- सहकारी समिति
- सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 या किसी भी राज्य की किसी अन्य विधि के अंतर्गत पंजीकृत समिति
- फॉर्म आई.टी.आर. -7 फ़ाइल करने के लिए पात्र न्यास के अलावा अन्य न्यास
- मृत व्यक्ति की सम्पदा
- एक दिवालिया की सम्पदा
- अनुभाग 139(4E) और निवेश निधि में निर्दिष्ट कारोबार न्यास, जो धारा 139(4F) में निर्दिष्ट है
टिप्पणी : हालांकि, कोई व्यक्ति जिसके लिए धारा 139(4A) या 139(4B) या 139(4D) के तहत आय की विवरणी फ़ाइल करना आवश्यक है, वह इस फॉर्म का उपयोग नहीं करेगा।
लागू होने वाले फॉर्म
(यह ट्रेसेस पोर्टल पर उपलब्ध है, जिसे ई-फ़ाईलिंग पोर्टल या इंटरनेट बैंकिंग में लॉग-इन करने के बाद एक्सेस किया जा सकता है)
सीमांत लागत क्या है ? सीमांत लागत विधि के अंतर्गत लाभ की गणना
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने से कुल लागत में जो अंतर आता है उसे सीमांत लागत कहते हैं। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए 5 वस्तुओं की कुल लागत 135 रुपये हैं तथा 6 वस्तुओं की कुल लागत 180 रुपये है। अतएव छठी वस्तु की सीमांत लागत इस प्रकार निकाली जा सकती है।
मैकोनल के अनुसार, ‘‘सीमांत लागत की परिभाषा वस्तु की एक अधिक इकाई का उत्पादन करने की अतिरिक्त लागत के रूप में की जा सकती है’’
फर्गुसन के अनुसार, ‘‘उत्पादन में एक इकाई की वृद्धि करने से कुल लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमांत लागत कहते हैं।’
सीमांत लागत क्या है?
वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई निर्मित करने की लागत सीमांत लागत है। सीमांत लागत से आशय परिवर्तनशील लागतों अर्थात्, मूल लागत तथा परिवर्तनशील उपरिव्ययों के योग से है। प्रति इकाई सीमांत लागत उत्पादन के किसी भी स्तर पर राशि में हुए परिवर्तन से है जिससे कुल लागत में परिवर्तन होता है, यदि उत्पादन मात्रा एक इकाई से बढ़ायी या घटाई जाती है।
सीमांत लागत विधि का अर्थ
इन्स्टीट्यूट ऑफ कास्ट एण्ड मैनेजमेंट एकाउन्टेन्ट्स, इंग्लैण्ड के अनुसार “सीमांत लागत विधि का आशय स्थायी लागत एवं परिवर्तशील लागत में अन्तर करके सीमांत लागत का निर्धारण करना तथा उत्पादन की मात्रा अथवा किस्म में परिवर्तन का लाभ पर प्रभाव ज्ञात करने से है।”
सीमांत लागत विधि के अंतर्गत लाभ की गणना
सीमांत लागत विधि के अंतर्गत लाभ ज्ञात करने के लिए कुल लागत को स्थिर लागत व परिवर्तनशील लागत में विभाजित कर लिया जाता है। तत्पश्चात सीमांत लागत को विक्रय मूल्य में से घटा दिया जाता है। शेष राशि अंशदान (Contribution) कहलाती है। इस अंशदान में स्थिर लागतों को घटाकर लाभ ज्ञात कर लिया जाता है। निर्मित माल व चालू कार्य के स्कन्ध का मूल्यांकन सीमांत लागत पर ही किया जाता है जिसमें किसी भी प्रकार के स्थिर व्यय सम्मिलित नहीं होते है
सीमांत लागत विधि के लाभ
सीमांत लागत निर्धारण विधि व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी तकनीक है। इसके प्रमुख लाभ, संक्षेप में हैं-
1. समझने में सरल - सीमांत लागत विधि समझने में सरल है। इसकी प्रक्रिया आसान है क्योंकि इसमें स्थायी लागतों को सम्मिलित नहीं किया जाता है, जिससे उनके अनुभाजन एवं अवशोषण की समस्या उत्पन्न नहीं होती। इसे प्रमाण लागत के साथ जोड़ा जा सकता है।
2. लागत तुलना - इस विधि में स्कन्ध का मूल्यांकन सीमांत लागत पर किया जाता है। जिससे स्थायी लागतों का एक हिस्सा स्कन्ध के रूप् में अगली अवधि में नहीं ले जाया जाता। इसलिए लागत एवं लाभ निष्प्रभाव नहीं होते तथा लागतों में तुलना सार्थक हो जीती है।
3. परिवर्तनों का लागत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन - उत्पादन अथवा विक्रय मात्रा या विक्रय मिश्रण तथा उत्पादन या विक्रय पद्धति में किये जाने वाले परिवर्तनों का लागतों एवं लाभों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस विधि द्वारा अध्ययन किया जा सकता है। इससे प्रबन्ध को नीति-निर्धारण तथा निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
4. लाभ नियोजन - इस विधि द्वारा लाभ तथा इसको प्रभावित करने वाले घटकों के मध्य आपसी सम्बन्ध का अध्ययन सम-विच्छेद बिन्दु, लाभ मात्रा अनुपात आदि तकनीकों द्वारा भली-भांति समझा जा सकता हैं इससे प्रबन्धकों को बजटिंग तथा लाभ नियोजन में सरलता रहती है। प्रबन्ध इस विधि के कारण भावी लाभ-योजनाएं बना सकते हैं तथा उनका मूल्यांकन किया जा सकता है।
5. लाभ नियंत्रण - अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए लागतों पर नियंत्रण किया जाना आवश्यक है। सीमांत लागत विधि में लागतों को स्थिर एवं परिवर्तनशील में वर्गीकृत करके उनके स्वभाव का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाता है। लागतों के इस प्रकार विभाजन से लागत नियंत्रण के लिए उत्तरदायित्व निश्चित किया जा सकता है। विभिन्न प्रबन्धकों को केवल उन्हीं लागतों की सूचना दी जाती है जिनके लिए वे उत्तरदायी होते है।
सामान्यत: परिवर्तनशील लागतों के नियंत्रण का दायित्व प्रबन्ध के निम्न स्तर का होता है। जबकि स्थिर लागतों में नियंत्रण का दायित्व उच्च प्रबन्ध का होता है। इस तरह यह विधि उत्पादन एवं बिक्री की परिवर्तित परिस्थितियों में लागत व्यवहार का अध्ययन करके उनके नियंत्रण में सहयोग देती है।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता क्या है इसकी व्याख्या
इरविंग फिषर नें 1930 में पूंजी की सीमांत उत्पादकता का प्रयोग ‘लागत पर प्राप्त प्रतिफल की दर’ के रुप में किया। पूंजी की सीमांत उत्पादकता से अभिप्राय नए निवेश से प्राप्त होने वाले लाभ की अनुमानित दर से है।
डिल्लर्ड के अनुसार, “किसी पूंजीगत पदार्थ की अतिरिक्त या सीमांत इकाई के लगाने से लागत पर आय की जो अधिकतम दर प्राप्त होती है उसे पूंजी की सीमांत उत्पादकता कहा जाता है।”
इस प्रकार पूंजी की सीमांत उत्पादकता से अभिप्राय पूंजी की अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाले प्रतिफल में से लागत निकालने के बाद प्राप्त हुई आय से होता है।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता के निर्धारक तत्व
पूंजी की सीमांत उत्पादकता का निर्धारण अनुमानित आय तथा पूर्ति कीमत पर निर्भर करता है। पूंजी की सीमांत उत्पादकता के इन दोनों तत्वों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है:
1. अनुमानित आय - अनुमानित आय से अभिप्राय उस कुल आय से होता है जिसका किसी पूंजीगत पदार्थ का प्रयोग करने से उसके कार्य की कुल अवधि में प्राप्त होने का अनुमान होता है।
2 पूर्ति कीमत - पूर्ति कीमत से अभिप्राय वर्तमान पूंजीगत पदार्थ की कीमत से नहीं सीमांत आय क्या निर्धारित करती है है। इसका अभिप्राय यह है कि वर्तमान पूंजीगत पदार्थ अर्थात् मशीन के स्थान पर बिल्कुल उसी प्रकार की नई मशीन की लागत क्या होगी।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता के निर्धारण का सूत्र
पूंजी की सीमांत उत्पादकता का निर्धारण अनुमानित आय और पूर्ति कीमत के द्वारा किया जाता है। इसे एक समीकरण से स्पष्ट कर सकते है:
यहां, m =पूंजी की सीमांत उत्पादकता
n =मशीन की जीवन अवधि
Py =अनुमानित आय
SP =पूर्ति कीमत
इस प्रकार यदि पूर्ति कीमत और अनुमानित आय मालूम हो तो पूंजी की सीमांत उत्पादकता को उपरोक्त समीकरण से ज्ञात किया जा सकता है।
पूंजी की सामान्य सीमांत उत्पादकता की व्याख्या
किसी विषेश पूंजीगत पदार्थ की सीमांत उत्पादकता से अभिप्राय सीमांत आय क्या निर्धारित करती है उस अनुमानित आय की दर से है जोपूंजी पदार्थ की एक नई या अतिरिक्त इकाई के लगाने से प्राप्त होती है। इसके विपरीत पूंजी की सामान्य सीमांत उत्पादकता से अभिप्राय सबसे लाभदायक पूंजी की नई इकाई से प्राप्त होने वाली अनुमानित आय की दर होती है। दूसरे शब्दों में, पूंजी की सामान्य सीमांत उत्पादकता से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के सबसे अधिक लाभपूर्ण पूंजीगत पदार्थ की उच्चतम सीमांत उत्पादकता से होता है।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता
रेखाचित्र में OX अक्ष पर निवेश और OYअक्ष पर पूंजी की सीमांत उत्पादकता तथा ब्याज की दर को लिया गया है। MECवक्रपूंजी की सीमांत उत्पादकता को प्रकट करता है। यह बाई ओर से दाई ओर की तरफ गिरता है। इससे सिद्ध होता है कि निवेश के वृद्धि होने से पूंजी की सीमांत उत्पादकता में कमी आती है।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्व
1. अल्पकालीन तत्व
- बाजार का आकार
- लागत तथा कीमत सम्बन्धी भावी सम्भावनाएं
- उपभोग प्रवृति में परिवर्तन
- उद्यमियों की मनोवैज्ञानिक अवस्था
- आय में परिवर्तन
- कर नीति
- पूंजी पदार्थों का वर्तमान भण्डार
- तरल परिसम्पत्तियों में परिवर्तन
- भविष्य में लाभ की सम्भावनाएं
- वर्तमान पूंजीगत पदार्थों की उत्पादन क्षमता
- वर्तमान निवेश की मात्रा
- पूंजीगत पदार्थ से वर्तमान में होने वाली आय
2. दीर्घकालीन तत्व
- जनसंख्या
- सरकार की आर्थिक नीति
- तकनीकी विकास
- असामान्य परिस्थितियां
- नये क्षेत्रों का विकास
- पूंजी उपकरण की पूर्ति में परिवर्तन
- मांग में दीर्घकालीन वृद्धि
पूंजी की सीमांत उत्पादकता की आलोचनाएं
पूंजी की सीमांत उत्पादकता की धारणा की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जा सकती है:
केन्ज ने पूंजी की सीमांत उत्पादकता का प्रयोग इतने विभिन्न अर्थों में किया है कि पूंजी की सीमांत उत्पादकता को एक अस्पष्ट और जटिल धारणा बना दिया है।
केन्ज के इस विचार की भी आलोचना की जाती है कि आषंसाओं का पूंजी की सीमांत उत्पादकता से तो सम्बन्ध है परन्तु ब्याज की दर से नहीं है। उन्होंने इस प्रकार से पूंजी की सीमांत उत्पादकता को गतिशील अर्थशास्त्र और ब्याज की दर को गतिहीन अर्थशास्त्र के क्षेत्र में सम्मिलित किया है। यह दृष्टिकोण वास्तविक नहीं है।
पूंजी की सीमांत उत्पादकता का तब तक अनुमान नहीं लगाया जा सकता जब तक हमें उत्पादन के सभी साधनों की उत्पादकता का ज्ञान न हो।
केन्ज ने पूंजी की सीमांत उत्पादकता का अनुमान पूर्ण प्रतियोगिता की अवास्तविक मान्यता पर लगाया है।
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