राष्ट्रीय दूरसंचार नीति, 1994

ऑप्टिकल फाइबर केबल, भूमिगत केबल आदि बनाने की क्षमताएं भी स्थापित की गई हैं । लक्ष्यों का संशोधन करने से मांग बढेग़ी और अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए क्षमताओं में वृध्दि करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा ।

मूल्य वर्धित सेवाएं

  1. इलेक्ट्रानिक मेल
  2. वॉयस मेल
  3. डॉटा सेवाएं
  4. ऑडियो टेक्स्ट सेवाएं
  5. वीडियो टेक्स्ट सेवाएं
  6. वीडियो कनफरेसिंग
  7. रेडियो पेजिंग
  8. सेल्यूलर मोबाइल टेलीफोन
  1. कम्पनी का ट्रेक रिकार्ड
  2. प्रौद्योगिकी की संगतता
  3. भावी विकास के लिए प्रदान की जा रही प्रौद्योगिकी की उपयोगिता,
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का संरक्षण,
  5. हक को अत्यन्त प्रतिस्पर्धात्मक लागत पर बेहतर किस्म की सेवा प्रदान करने की योग्यता,
  6. दूरसंचार विभाग के लिए आकर्षण वाणिज्यिक शर्तें ।

मूल सेवाएं

प्रायोगिक परियोजनाएं :

दूरसंचार एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक तरंगों की किस्में आधारभूत अवसंरचना है । यह प्रौद्योगिकी उन्मुख भी है । अत : यह आवश्यक है कि दूरसंचार के क्षेत्र में नीति का प्रबंध इस प्रकार का हो कि प्रौद्योगिकी का अन्त: प्रवाह आसान हो जाए तथा भारत उद्भूत होने वाली नई प्रौद्योगिकियों का पूरा लाभ उठाने में किसी से पीछे नहीं रहे । दूरसंचार की नीतिगत पहलू भी इतना ही महत्वपूर्ण है जो राष्ट्रीय तथा जनहितों को प्रमाणित करता है । अत: आवश्यक है कि स्वदेशी प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन प्रदान किया जाए और स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास के लिए एक उपयुक्त वित्त पोषण तंत्र की स्थापना की जाए, ताकि भारतीय प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय मांग की पूर्ति कर सके और साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्पर्धा कर सके ।

Virya Badhane Ke Gharelu Upay in Hindi - वीर्य बढ़ाने के घरेलू उपाय

Dt.Radhika | Lybrate.com

कम शुक्राणु की संख्या पुरुष की एक सामान्य समस्या है और गर्भाधान में कठिनाई का कारण बनती है। कम शुक्राणु की संख्या एक अवस्था है जिसे ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें शुक्राणु की मात्रा 15 मिलियन शुक्राणु प्रति एम.एल से कम हो जाती है। यदि वीर्य के नमूने में कोई शुक्राणु नहीं हैं, तो स्थिति को एजोस्पर्मिया कहा जाता है।

अपर्याप्त शुक्राणु उत्पादन और गुणवत्ता पुरुष बांझपन के लिए सबसे आम कारणों में से एक है। लगभग 15 प्रतिशत जोड़ों ने गर्भाधान समस्याओं का अनुभव किया है, और यह प्रतिशत बढ़ रहा है।

कम शुक्राणु का कारण क्या है? - Shukranu Ki Kami Ke Karan

कभी-कभी एक आंतरिक कारक, जैसे कि वैरिकोसेले, शुक्राणुओं की संख्या कम कर सकता है। लेकिन धूम्रपान, नशीली दवाओं के उपयोग, खराब भोजन और व्यायाम की कमी जैसे कई बाहरी कारक हैं जो शुक्राणुओं की संख्या को कम कर सकते हैं।

कुछ बाहरी कारक जो आपके शुक्राणुओं को प्रभावित कर सकते हैं:

  1. सामान्य शुक्राणु उत्पादन पर गर्मी का एक हानिकारक प्रभाव हो सकता है। सौना या गर्म टब के लगातार उपयोग, लंबे घंटों तक बैठना, टाइट अंडरवियर, मोटापा आदि अंडकोष के तापमान को बढ़ा सकते हैं।
  2. अत्यधिक धूम्रपान और शराब पीने से भी शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है।
  3. हार्मोन संतुलन पर तनाव का एक बड़ा प्रभाव हो सकता है जो बदले में शुक्राणु उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।
  4. अत्यधिक संसाधित सोया खाद्य पदार्थ (सोया दूध, सोया बर्गर, आदि) में आइसोफ्लावान्स की केंद्रित मात्रा होती है, टेस्टोस्टेरोन के लिए आवश्यक एस्ट्रोजेन रिसेप्टर साइटों को ब्लॉक करने वाला एक फाईटोस्ट्रोजन।
  5. यहां तक कि विद्युतचुंबकीय आवृत्तियों और रेडियो आवृत्ति तरंगों से शुक्राणुओं की संख्या में कमी आ सकती है

शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए घरेलू उपचार - Virya Badhane Ke Gharelu Upay in Hindi

विभिन्न प्राकृतिक उपचार और अन्य युक्तियां आपके शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने और शुक्राणु की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता कर सकती हैं।

इनसे सीखें: ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर किसानों के लिए नजीर बने अरुण

चौसा। सुधीर कुमार सिन्हा में लहलहा रही सरसों की फसल पीले सोने की तरह चमक बिखेर रही है। ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर अरुण अपने क्षेत्र के किसानों के लिए नजीर बन गये हैं। आज कल वे खेती-बाड़ी में नवीनतम.

इनसे सीखें: ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर किसानों के लिए नजीर बने अरुण

चौसा। सुधीर कुमार सिन्हा

कुछ नया कर सुर्खियां बटोरने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ बेजोड़ हौसला की आवश्यकता होती है। कृषि प्रक्षेत्र में कुछ इसी तरह की मिशाल पेश कर रहे हैं चौसा के युवा किसान अरुण कुमार सिंह कुशवाहा। चौसा में गंगा के तट पर उनके खेत में लहलहा रही सरसों की फसल पीले सोने की तरह चमक बिखेर रही है। ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर अरुण अपने क्षेत्र के किसानों के लिए नजीर बन गये हैं। आज कल वे खेती-बाड़ी में नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल कर जो मिसाल पेश कर रहे हैं, उससे न केवल उनकी खेती समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ रही है, बल्कि यह क़ृषि कार्य करने वाले सभी किसानों के लिए प्रेरणा दायक और अनुकरणीय भी है।

इंडिया मार्ट, दिल्ली से मंगाया था ऑस्ट्रेलियन सरसों का बीज:

चौसा बाजार निवासी अरुण सिंह कुशवाहा ने गंगा नदी के किनारे अपने पांच एकड़ खेत में इस बार नया प्रयोग करते हुए आस्ट्रेलियाई सरसों की खेती की है। उन्होंने बताया कि यू ट्यूब चैनल के माध्यम से जानकारी हासिल कर अपनी खेती को समृद्ध करने के लिए यह नया प्रयोग पहली बार अपने खेत में किया है। उन्होंने कहा कि 45 एफ 46 आस्ट्रेलियाई सरसों का बीज हाईब्रिड है। कहा कि इंडिया मार्ट, दिल्ली से ऑनलाइन ऑर्डर कर मंगाया था। बीज का भाव 960 रुपये पति किलो है और एक एकड़ में एक किलो बीज डाला गया है।

उन्होंने कहा कि पांच एकड़ में ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती किए हैं। खेत में सरसों की फसल लहलहा रही है। उन्होंने बताया कि देसी सरसों का उत्पादन आमतौर पर प्रति एकड़ चार से पांच क्विंटल के आसपास होता है, लेकिन इस उच्च गुणवत्ता वाले आस्ट्रेलियाई प्रजाति के सरसों का उत्पादन प्रति एकड़ तेरह से पंद्रह क्विंटल होने की संभावना है। अरुण ने कहा कि खेत में सरसों के दाने लगभग तैयार हो चुके हैं और 15 दिनों में इसकी कटाई भी कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि उच्च गुणवत्ता होने के बावजूद इस सरसों का मूल्य बाजारों में बिकने वाली अन्य देशी सरसों के मूल्य के आसपास ही होता है।

पहले भी सुर्खियों में आए थे अरुण:

चौसा के अरुण आधुनिक खेती कर पहले भी सुर्खियों में आए थे। वे ‘काला नमक धान का उपत्पादन कर कामयाबी हासिल कर चुके हैं। बता दें कि अरुण सिंह कुशवाहा परंपरागत खेती से हटकर इसी वर्ष धान की खेती करने में भी नया प्रयोग करते हुए 'काला नमक' धान की खेती किये थे। खेती में नये-नये प्रयोग कर अपनी सफलता की नयी लकीर पहले भी खींच चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस 'काला नमक' धान की खेती करने का तरीका उन्होंने गोरखपुर के रहने वाले रामशेष चौधरी से प्रेरणा लेकर की थी।

सिर्फ ये चार सांप ही होते हैं जहरीले, बाकी होते हैं फुस्स

out of total 200 snakes only these four kind of snakes are poisonous

सांपों को सम्मान देने के पर्व नागपंचमी पर सांपों के संरक्षण का ध्यान रखते हुए उनके प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की जरूरत है। जहर के कारण सांपों को खतरनाक मानने वाले जान लें कि भारत में करीब 200 किस्म के सांप पाए जाते हैं जिनमें से सिर्फ चार ही जहरीले हैं।

बाकी के सांप ‘नान पायजनस’ हैं। मनुष्य के मित्र और प्रकृति की शानदार देन सांपों के प्रति जागरूकता पैदा करने के काम में लगे ओंकार सिंह इसी मकसद से बुधवार को अचल ताल की गुमटी पर एक प्रदर्शनी लगा रहे हैं।

इसमें वह सांपों से जुड़ी भ्रांतियां और उनकी उपयोगिता को बताएंगे। ओंकार सिंह कहते हैं अगर सांप न हों तो चूहे अपनी प्रजनन क्षमता से अपनी संख्या इतनी बढ़ा लेंगे कि पूरी सुधारात्मक तरंगों की किस्में पृथ्वी का अनाज तीन दिनों में साफ कर जाएंगे।

इस प्रजाति के सांप होते हैं जहरीले

- केवल कोबरा, कामन करैत, रसल्स वायपर और सस्किल्ड वायपर ही जहरीले हैं।

- सांप दूध नहीं पीते। न सुन सकते हैं क्योंकि उनके कान नहीं होते, हवा में ध्वनि तरंगों के कारण वह सक्रिय होते हैं।
- मूवमेंट के प्रति संवेदनशील होते हैं इसीलिए हिलती हुई चीज देखकर प्रतिक्रिया करते हैं।
- सभी सांप आत्मरक्षा में काटते हैं जो कि इनका स्वाभाविक गुण है।
- दुमुंही सांप के दो मुंह नहीं होते। न ही यह छह महीने एक और छह महीने एक मुंह का प्रयोग करते हैं।
- इच्छाधारी नाग और नागिन का होना, मणि धारी नाग का होना, नागिन का बदला लेना भ्रामक बातें हैं।
- सांपों की औसत उम्र 40 वर्ष से अधिक नहीं होती। सांपों में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती।
- गर्भवती स्त्री को देखने से सांप अंधा हो जाता है, यह सुधारात्मक तरंगों की किस्में भी भ्रामक बात है।
- सांप डसने पर (बायगीरों के कहने पर) फिर से जहर निकालने आ जाता है, यह गलत है।

- काटने के स्थान से ऊपर तक दो बंध लगाएं
- समय बर्बाद न करें, अस्पताल ले जाने में देर न करें
- समय से उपचार मिल जाए तो 99 फीसदी मामलों में जान बच जाती है।

आज अचल गुमटी पर जागरूकता प्रदर्शनी

आज सुबह 10 बजे अचल सरोवर की गुमटी पर जो प्रदर्शनी ओंकार सिंह लगा रहे हैं उसमें लकड़ी के मॉडल्स, चार्ट, वास्तव के सांप आदि के माध्यम से सांपों के विभिन्न पहलुओं को उजागर करेंगे।

ओंकार सिंह का कहना है कि अगर किसी के घर में सांप निकल आए तो उसे जिंदा पकड़ कर जंगल में छोड़ा जा सकता है। ओंकार सिंह को भी दो बार कोबरा काट चुका है लेकिन सही जानकारी और उपचार से वह स्नैक बाइट से बेअसर रहे।

सांपों को सम्मान देने के पर्व नागपंचमी पर सुधारात्मक तरंगों की किस्में सांपों के संरक्षण का ध्यान रखते हुए उनके प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की जरूरत है। जहर के कारण सांपों को खतरनाक मानने वाले जान लें कि भारत में सुधारात्मक तरंगों की किस्में करीब 200 किस्म के सांप पाए जाते हैं जिनमें से सिर्फ चार ही जहरीले हैं।

बाकी के सांप ‘नान पायजनस’ हैं। मनुष्य के मित्र और प्रकृति की शानदार देन सांपों के प्रति जागरूकता पैदा करने के काम में लगे ओंकार सिंह इसी मकसद से बुधवार को अचल ताल की गुमटी पर एक प्रदर्शनी लगा रहे हैं।

इसमें वह सांपों से जुड़ी भ्रांतियां और उनकी उपयोगिता को बताएंगे। ओंकार सिंह कहते हैं अगर सांप न हों तो चूहे अपनी प्रजनन क्षमता से अपनी संख्या इतनी बढ़ा लेंगे कि पूरी पृथ्वी का अनाज तीन दिनों में साफ कर जाएंगे।


इस प्रजाति के सांप होते हैं जहरीले

- केवल कोबरा, कामन करैत, रसल्स वायपर और सस्किल्ड वायपर ही जहरीले हैं।

सांपों के संबंध में क्या आप जानते हैं?

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- सांप दूध नहीं पीते। न सुन सकते हैं क्योंकि उनके कान नहीं होते, हवा में ध्वनि तरंगों के कारण वह सक्रिय होते हैं।
- मूवमेंट के प्रति संवेदनशील होते हैं इसीलिए हिलती हुई चीज देखकर प्रतिक्रिया करते हैं।
- सभी सांप आत्मरक्षा में काटते हैं जो कि इनका स्वाभाविक गुण है।
- दुमुंही सांप के दो मुंह नहीं होते। न ही यह छह महीने एक और छह महीने एक मुंह का प्रयोग करते हैं।
- इच्छाधारी नाग और नागिन का होना, मणि धारी नाग का होना, नागिन का बदला लेना भ्रामक बातें हैं।
- सांपों की औसत उम्र 40 वर्ष से अधिक नहीं होती। सांपों में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती।
- गर्भवती स्त्री को देखने से सांप अंधा हो जाता है, यह भी भ्रामक बात है।
- सांप डसने पर (बायगीरों के कहने पर) फिर से जहर निकालने आ जाता है, यह गलत है।

अगर सांप काट ले तो ये करें

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- काटने के स्थान से ऊपर तक दो बंध लगाएं
- समय बर्बाद न करें, अस्पताल ले जाने में देर न करें
- समय से उपचार मिल जाए तो 99 फीसदी मामलों में जान बच जाती है।

आज अचल गुमटी पर जागरूकता प्रदर्शनी

आज सुबह 10 बजे अचल सरोवर की गुमटी पर जो प्रदर्शनी ओंकार सिंह लगा रहे हैं उसमें लकड़ी के मॉडल्स, चार्ट, वास्तव के सांप आदि के माध्यम से सांपों के विभिन्न पहलुओं को उजागर करेंगे।

ओंकार सिंह का कहना है कि अगर किसी के घर में सांप निकल आए तो उसे जिंदा पकड़ कर जंगल में छोड़ा जा सकता है। ओंकार सिंह को भी दो बार कोबरा काट चुका है लेकिन सही जानकारी और उपचार से वह स्नैक बाइट से बेअसर रहे।

उत्तराखंड में आम की पैदावार कर सकती है लोगों को मालामाल, जानिए कैसे पहाड़ों में सफल होंगे आम के नए बागान

उत्तराखंड में आम की खेती की अपार संभावनाएं हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

डॉक्टर राजेंद्र कुकसाल एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना में कृषि एवं उद्यान के वरिष्ठ सलाहकार हैं. वह राज्य के कई ज़िलों म . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : July 28, 2020, 10:43 IST

देहरादून. आम उत्तराखंड का एक मुख्य फल है. यहां आम की खेती से अच्छा फ़ायदा कमाया जा सकता है और यह पलायन रोकने में भी कामयाब हो सकता है लेकिन क्या वजह है कि सालों से करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी उत्तराखंड में आम के नए बागान विकसित नहीं हो पा रहे हैं? क्या आम के नए बागान विकसित करना और पैदावार बढ़ाना संभव भी है? विशेषज्ञ कहते हैं- बिल्कुल. और यह ज़्यादा कारगर और सस्ता भी हो सकता है. डॉक्टर राजेंद्र कुकसाल एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना में कृषि एवं उद्यान के वरिष्ठ सलाहकार हैं. वह राज्य के कई ज़िलों में बतौर ज़िला उद्यान अधिकारी काम कर चुके हैं. आम के बागान विकसित न हो पाने की वजहों और संभावनाओं पर उनकी बात उन्हीं के शब्दों में.

अच्छे फ़ायदे की संभावना

आम उत्तराखंड का एक मुख्य फल है. उद्यान विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य सुधारात्मक तरंगों की किस्में में 35,911 हेक्टेयर क्षेत्रफल आम के बाग हैं जिनसे 1,49,727 मीट्रिक टन फसल प्राप्त होती है. पहाड़ी क्षेत्रों में आम की फ़सल मेंदानी क्षेत्रों की अपेक्षा एक माह बाद (जुलाई /अगस्त) में पक कर तैयार होती है. इस तरह यहां का आम उत्पादक आम की फसल से अच्छा आर्थिक लाभ ले सकता है.

पहाड़ी क्षेत्रों में सुधारात्मक तरंगों की किस्में आम के बीजू पौधे 1400 मीटर (समुद्र तल से ऊंचाई) तक देखे जा सकते हैं. किन्तु आम की अच्छी उपज समुद्र तल से 1000 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों से ही मिलती है. अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में उपज कम हो जाती है.

उधान विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं ज़िला योजना, राज्य सेक्टर, भारत सरकार के हार्टिकल्चर टेक्नोलॉजी मिशन, कृषि विकास योजना, ग्राम्या, जलागम के साथ ही विभिन्न गैर सरकारी संगठन कई वर्षों से आम फल पट्टी विकसित करने के प्रयास कर रहे हैं. लेकिन प्रतिवर्ष विभिन्न परियोजनाओं में करोड़ों रुपये खर्च कर लाखों पौधे लगाने के बाद भी पहाड़ी क्षेत्रों में आम की नई फल पट्टियां विकसित होती नहीं दिखाई देती है.

इसलिए नहीं बढ़ रही आम की पैदावार

इसकी वजह यह है कि आम के कलमी पौधे रोपण के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य के मेंदानी क्षेत्रों या उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद, सहारनपुर आदि स्थानों के पंजीकृत पौधालयों से भेजे जाते हैं.

योजनाओं में आपूर्ति किए गए इन आम के पौधों में Feeder roots काफी कम होती हैं और मुख्य जड़ कटी हुई होती है. यदि आप आम के इन पौधों की पिन्डी (जड़ों पर लिपटी मिट्टी) को हटाएंगे तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. ऐसा पौध उत्पादकों का अधिक आर्थिक लाभ लेने की वजह से मानकों के पालन न करने की वजह से होता है.

मैदानी क्षेत्र से आपूर्ति किए जाने वाले पौधों कि ज्यादातर पिन्डियां सड़क द्वारा यातायात में मानकों का पालन न करने (ट्रकों के पौधे एक ही ट्रक में ढुलान करना भले ही कागज़ों में ढुलान पर दो ट्रक दिखाए जाते हों) और सडक से किसान के खेत तक पहुंचाने में टूट जाती हैं. इससे पौधों को काफी नुकसान होता है.

खेत में इन पौधों को लगाने पर पहले साल में ही 40 से 60% तथा और फिर अगले एक या दो सालों में 80% तक पौधे मर जाते हैं. इससे कृषकों को काफी आर्थिक नुकसान पहुंचता है तथा उसका सरकारी योजनाओं से विश्वास भी हटता जा रहा है.

पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे लगाएं आम के बाग

In-situ (यथा स्थान) ग्राफ्टिंग कर पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किए जा सकते हैं. आम के बाग लगाने के लिए समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊंचाई वाले स्थानों या जिन स्थानों पर पहले से ही आम के बाग अच्छी उपज दे रहे हैं को चुनें. जिन स्थानों पर पाला ज्यादा पड़ता हो उन स्थानों को न चुनें.

कलम बांधने के लिए उद्यान विभाग और पंजीकृत पौधालयों के प्रशिक्षित मालियों का सहयोग लिया जा सकता है.

In-situ ग्राफ्टिंग द्वारा विकसित आम के बाग के कई लाभ हैं.


  • पौधों में तीव्र गति से अधिक बढ़त होती है.
  • बाहर से कलमी पौधे लाकर लगाने में अधिक मृत्यु दर के विपरी in-situ ग्राफ्टिंग में सभी पौधे जीवित व स्वस्थ रहते हैं.
  • बाग से जल्दी और कम खर्च में उपज प्राप्त होती है.
  • क्योंकि कलमों का चुनाव हम स्वयंम स्वस्थ मातृ वृक्षों से करते हैं इसलिए फैलने वाले रोगों (माल फॉर्मेशन आदि) से बचा जा सकता है.
  • बाग में सिंचाई की कम आवश्याकता होती है क्योंकि बीजू पौघे मूल वृन्त की जड़ें काफी गहरी चली जाती हैं.
  • बाग में लगे सभी पौधों की वृद्धि एक समान रहती है जबकि नर्सरी से रोपित किए गए कलमी पौधों की नहीं. इसकी वजह यह है कि नर्सरी से रोपित कलमी पौधों में मृत्यु दर काफी रहती है और हर साल मरे हुए पौधों के स्थान पर नई जीवित पौध लगाई जाती है. यह क्रम कई वर्षों तक चलता रहता है. इसलिए इन बागों की वृद्धि दर समान नहीं रहती.
  • कम लागत में बगीचा विकसित होता है.
  • आम के पौधों को शुरु के वर्षो में पाले से काफ़ी नुकसान पहुंचाता है. शुरु के तीन सालों तक तक पौधों को 15 नवम्बर के बाद मार्च तक सूखी घास से चारों तरफ से ढक कर रखें. दक्षिण दिशा की तरफ थोड़ा खुला छोड दें. पौधों के थावलों में नमी बनी रहे जिससे पाले का असर पौधों पर न हो पाए. सूखे में पाला पौधों को ज्यादा नुकसान करता है.

यूपी की तरह चल रही हैं योजनाएं

इस प्रकार In-situ ग्राफ्टिंग विधि द्वारा उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में आम के बाग विकसित किए जा सकते हैं. हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर आदि क्षेत्रों में आम के बाग in situ (यथा स्थान ग्राफ्टिंग) विधि से ही विकसित हुए हैं.

राज्य बनने पर आशा जगी थी कि योजनाओं में यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सुधार होगा किन्तु ऐसा नहीं हुआ. आज भी योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उत्तर प्रदेश के समय चलती थीं. उच्च स्तरीय बैठकों में योजनाओं की समीक्षा के नाम पर केवल कितना बजट आवंटित था और कितना अब तक खर्च हुआ इसी पर चर्चा होती है. यदि धरातल पर योजनाएं नहीं उतर रही हैं तो ज़रूरत इस बात की है कि विचार इस पर किया जाए कि उसमें सुधार कैसे करना है.

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