एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) में इन्वेस्टमेंट आपको दिला सकता है अधिक प्रॉफिट, जानें इससे जुड़ी खास बातें
स्टॉक मार्केट (Stock Market) और म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में इन्वेस्टमेंट करने वालों सभी लोगों ने अक्सर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF के बारे में सुना ही होगा। आज के दौर में यह काफी ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। आज के दौर में हर युवा कम समय में ज्यादा से ज्यादा रिटर्न पाना चाहता है, लेकिन कम समय में ज्यादा रिटर्न पाने वाली स्कीम में काफी रिस्क भी हो सकते हैं। ऐसे तो इन्वेस्टर के पास इन्वेस्ट करने के कई ऑप्शन होते हैं। जैसे कि फिक्स डिपॉजिट, म्युचुअल फंड, ईटीएफ, शेयर मार्केट, सेविंग स्कीम आदि। हालांकि, इन्वेस्टमेंट करने से पहले जरूरी है आपको इसकी पूरी जानकारी होना चाहिए। जिससे आप आसानी से निवेश के ऑप्शन का चुनाव कर सकते हैं। स्टॉक मार्केट (Stock Market) और म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में इन्वेस्टमेंट करने वालों सभी लोगों ने अक्सर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF के बारे में सुना ही होगा। आज के दौर में यह काफी ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है और म्यूचुअल फंड कंपनियां भी लगातार नए-नए ETF मार्केट में ला रही हैं। ऐसे में आपके भी मन में यह सवाल उठता होगा कि आखिर ETF क्या होता है और यह कैसे काम करता है।
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एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF एक प्रकार का निवेश है जिसे स्टॉक एक्सचेंजों पर खरीदा और बेचा जाता है। ETF में बांड, या स्टॉक को खरीदे बेचे जाते हैं। एक एक्सचेंज ट्रेडेड फंड एक म्यूचुअल फंड की जैसा ही होता है, लेकिन म्यूचुअल फंड के विपरीत, ईटीएफ को ट्रेडिंग टर्म के दौरान किसी भी वक्त बेचा जा सकता है। बता दें कि, ईटीएफ का रिटर्न और रिस्क बीएसई सेंसेक्स (BSE Sensex) जैसे इंडेक्स या गोल्ड जैसे एसेट में उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है। जिस तरह मिल्क के प्राइस बढ़ जाने से पनीर और घी के भी प्राइस बढ़ जाते हैं इसी तरह ईटीएफ में भी इंडेक्स में भी ट्रैडिंग होता है। इसके अलावा ETF को म्यूचुअल फंड स्कीम की तरह ही पेश किया जाता है। वहीं यह गोल्ड ETF, इंडेक्स ETF, बॉन्ड ETF, करेंसी ETF के रूप में हो सकते हैं।
इस तरह करें इन्वेस्ट
ईटीएफ में इन्वेस्ट के लिए डीमैट के साथ ट्रेडिंग अकाउंट का होना बहुत जरूरी है। इसमें कोई व्यक्ति 3-इन-1 अकाउंट खोलने का ऑप्शन चुन सकते है। साथ ही, इसमें बैंक अकाउंट के साथ डीमैट अकाउंट और ट्रेडिंग अकाउंट की भी सुविधा मिलती है। बता दें कि, हर रोज ईटीएफ इन्वेस्टमेंट के बारे में जानकारी देते हैं, जिससे इसमें इन्वेस्टमेंट ज्यादा से ज्यादा सेफ हो सकते हैं। इसे आसानी से बेचा भी जा सकता है। ईटीएफ में इन्वेस्टमेंट करके अलग-अलग सेक्टर में इन्वेस्टमेंट किया जा सकता है। इसमें ETF डिविडेंड पर टैक्स नहीं लगता है।
क्या आप ईटीएफ में निवेश करना चाहते हैं? इसके फायदे और नुकसान जान लें
ईटीएफ (ETF) के जरिए आप किसी खास तरह की सिक्योरिटीज (Securities) में निवेश करते हैं। निफ्टी 50 ईटीएफ और गोल्ड ईटीएफ (Gold ETF) इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
हाइलाइट्स
- ईटीएफ को शेयरों की तरह स्टॉक एक्सचेंज में खरीदा और बेचा जा सकता है।
- इसकी कीमत शेयर बाजार के सत्र के दौरान ऊपर और नीचे जाती है।
- ईटीएफ में लिक्विडटी अपेक्षाकृत कम होती है, जिससे इसे बेचने में मुश्किल आती है।
ईटीएफ में निवेश के फायदे
ईटीएफ को शेयर बाजार में रियल टाइम बेसिस पर खरीदा या बेचा जा सकता है। इसकी प्रबंधन लागत भी कम होती है। अगर आपके पास ट्रेडिंग अकाउंट है तो शेयर बाजार के सत्र के दौरान आप आसानी से शेयरों की तरह ईटीएफ खरीद और बेच सकते हैं। इसका एक्सपेंस रेशियो कम होता है। आप ईटीएफ की एक यूनिट भी खरीद सकते हैं। ईटीएफ निवेशक को एक सत्र में कीमत में होने वाले उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने का मौका देता है। म्यूचुअल फंड में आपको यह मौका नहीं मिलता है। निफ्टी 50 ईटीएफ, गोल्ड ईटीएफ, लिक्विड ईटीएफ और इंटरनेशनल ईटीएफ कुछ मशहूर ईटीएफ के उदाहरण हैं।
ईटीएफ में निवेश के नुकसान
ईटीएफ आज भी म्यूचुअल फंडों के मुकाबले कम लोकप्रिय हैं। इससे होने वाला कारोबार (वॉल्यूम) कम होता है। इस वजह से खरीदने के लिए ऑफर की गई कीमत और बेचने के लिए ऑफर की गई कीमत के बीच फर्क ज्यादा होता है। इस वजह से इसमें लिक्विडटी कम होती है। इस वजह से ईटीएफ बेचने में थोड़ी मुश्किल आ सकती है। अगर आप कम संख्या में ईटीएफ की यूनिट खरीदते या बेचते हैं तो ब्रोकरेज और डीमैट चार्ज थोड़ा ज्यादा हो जाता है।
म्यूचुअल फंड की मास्टर क्लास: क्या है पैसिव इन्वेस्टमेंट? ETF के जरिए कैसा होता है निवेश? जानिए एक्सपर्ट की राय
पैसिव इन्वेस्टिंग में मार्केट रिटर्न देखा जाता है. पैसिव इन्वेस्टिंग का फंडा मीटिंग रिटर्न है. ETF के जरिए पैसिव इन्वेस्टिंग की जा सकती है. भारत में बढ़ रहा है ETF में निवेश. EPFO भी ETF रुट को इस्तेमाल करती है. लार्जकैप में अल्फा धीरे-धीरे कम हो रहा है. डीमैट के बिना फंड ऑफ फंड में निवेश कर सकते हैं. फंड ऑफ फंड के जरिए ETF का एक्सपोजर मिल जाता है. विदेशी बाजार में एक्सपोजर के लिए फंड ऑफ फंड बेहतर विकल्प है: उमेश कुमार, हेड ETF सेल्स मिराए एसेट म्यूचुअल फंड मैनेजर्स.
क्या होता है ईटीएफ?
ईटीएफ का मतलब है एक्सचेंज ट्रेडेड फंड। एक ऐसा फंड जो स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध है और जिसे एक स्टॉक (शेयर) की ETF क्या होता है तरह खरीदा-बेचा जा सकता है। एक प्रकार से यह अलग-अलग शेयरों का एक समूह है जिसमें वही शेयर शामिल होते हैं जो बीएसई सेंसेक्स या एनएसई निफ्टी में होते हैं। इसका मूल्य रियल टाइम में बदलता रहता है और आप इसे कारोबारी दिवस में किसी समय खरीद या बेच सकते हैं। म्युच्युअल फंड से यह इस मामले में भिन्न होता है क्योंकि इसे सिर्फ दिन में एक बार बाजार बंद होने के बाद खरीदा-बेचा जा सकता है। ईटीएफ में शेयर , वस्तु और बांड्स सहित कई प्रकार के निवेश हो सकते हैं। इस आधार पर ईटीएफ कई प्रकार ETF क्या होता है के हो सकते हैं जैसे- बांड्स ईटीएफ जिसमें सरकारी बांड्स , कारपोरेट बांड्स और म्युनिसिपल बांड्स शामिल हैं। इसी प्रकार उद्योग आधारित ईटीएफ हो सकते हैं जो किसी एक उद्योग को ट्रैक करते हैं। इनमें बैंकिंग , प्रौद्योगिकी या तेल व प्राकृतिक गैस और उस क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों पर आधारित होते हैं। कमोडिटी ईटीएफ जो सोना या कच्चे ETF क्या होता है तेल जैसी वस्तुओं में निवेश करते हैं। इसी तरह करेंसी ईटीएफ जो विदेशी मुद्रा में निवेश करते हैं। हालांकि निवेशकों को ईटीएफ के लिए ब्रोकरेज चार्ज देने होते हैं। ईटीएफ का सबसे अच्छा उदाहरण ‘ एसपीडीआर एसएंडपी 500 ’ ईटीएफ है जो अमेरिकी शेयर बाजार के सूचकांक एसएंडपी 500 इंडेक्स को ट्रैक करता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा और जाना-पहचाना ईटीएफ है। असल में ईटीएफ की शुरुआत ही अमेरिका से 1993 में हुई। शुरुआत में निवेशकों का रुझान ईटीएफ में निवेश की ओर नहीं था। लेकिन ईटीएफ ने दुनियाभर में व्यक्तिगत और संस्थागत निवेशकों के लिए निवेश का एक बड़ा अवसर प्रदान किया। ईटीएफ का मूल्य उसमें निहित शेयर या वस्तु के नेट एसेट वैल्यू यानी एनएवी पर आधारित होता है। हमने ऊपर पढ़ा कि ईटीएफ एक प्रकार का इंडेक्स फंड होता है। इसलिए यहां इंडेक्स फंड का मतलब भी समझना जरूरी है। एक इंडेक्स फंड एक प्रकार का म्युच्अल फंड है जो बिल्कुल शेयर बाजार के सूचकांक जैसा दिखता है। ईटीएफ के फंड मैनेजर शेयर बाजार के सूचकांक में शामिल शेयरों के अनुपात में निवेश करते हैं ताकि बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिति में निवेशकों का जोखिम कम रहे। यह निवेशकों के लिए कई मायनों में फायदेमंद होता है। निवेशक का पहला फायदा यह होता है कि वह परोक्ष रूप से उन ब्लूचिप कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है जिन्हें मिलाकर शेयर बाजार का सूचकांक बना है। चूंकि शेयर बाजार के सूचकांक में शामिल कंपनियां कम से कम 20 से 25 सेक्टर की होती हैं , इसलिए उनके निवेश में विविधता होती है।
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कैसे करें सही ETF का चुनाव? निवेश से पहले इन पैरामीटर्स का रखना चाहिए ध्यान
जिस तरह किसी स्टॉक में निवेश से पहले पड़ताल करना जरूरी होता है, वैसे ही ईटीएफ में निवेश से पहले कुछ पहलुओं पर जरूर कर लेना चाहिए.
भारत समेत दुनिया भर में ईटीएफ के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ रहा है.
मौजूदा दौर में निवेशकों के सामने निवेश के कई विकल्प हैं. इनमें से एक विकल्प एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) का है जो निवेशकों की पूंजी को कई शेयरों के एक सेट में निवेश करते हैं. इसमें पारंपरिक स्टॉक्स और बांड्स से लेकर करेंसीज और कमोडिटीज जैसी मॉडर्न सिक्योरिटीज भी शामिल हैं. कोई भी निवेशक ब्रोकर के जरिए ईटीएफ के अपने शेयरों की खरीद-बिक्री कर सकता है. इसका कारोबार शेयर बाजार में किया जाता है.
कम एक्पेंस रेशियो (0.06 फीसदी तक कम), एक्टिव फंड्स की तुलना में बेहतर टैक्स एफिशिएंसी, डाइवर्सिफिकेशन बेनेफिट्स और इंडेक्स लिंक्ड रिटर्न के चलते ईटीएफ तेजी से पॉपुलर हो रहा है. हालांकि रिलायंस सिक्योरिटीज के सीईओ लव चतुर्वेदी के मुताबिक जैसे किसी स्टॉक में निवेश से पहले पड़ताल करना जरूरी होता है, वैसे ही ईटीएफ में निवेश से पहले कुछ पहलुओं पर जरूर कर लेना चाहिए.
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निवेश से पहले इन पैरामीटर्स पर परखें ईटीएफ को
- ईटीएफ में सिर्फ इक्विटीज की बजाय सभी एसेट क्लासेज शामिल होने चाहिए.
- ईटीएफ को चुनते समय या उसमें निवेश करने से पहले निवेशकों को एल4यू स्ट्रेटजी पर भरोसा रखना चाहिए- लिक्विडिटी, लो एक्सपेंस रेशियो, लो इंपैक्ट कॉस्ट, लो ट्रैकिंग एरर और अंडरलाइंग सिक्योरिटीज.
- ईटीएफ की लिक्विडिटी से निवेशकों को स्टॉक एक्सचेंज पर इसकी खरीद या बिक्री करने में आसानी रहेगी. लिक्विडिटी का मतलब है कि एक्सचेंजों पर ईटीएफ की पर्याप्त ट्रेडिंग वॉल्यूम होनी चाहिए.
- आमतौर पर ईटीएफ के एक्सपेंस रेशियो एक्टिव फंड्स की तुलना में कम होते हैं लेकिन निवेशकों को विभिन्न ईटीएफ के एक्सपेंस रेशियो की आपस में तुलना जरूर करनी चाहिए क्योंकि यह ओवरऑल रिटर्न को प्रभावित करता है.
- इंपैक्ट कॉस्ट एक्सचेंज पर ट्रांजैक्शन को लेकर इनडायरेक्ट कॉस्ट है. लिक्विडिटी अधिक होने पर इंपैक्ट ETF क्या होता है कॉस्ट कम होता है और इस प्रकार निवेशकों को इनडायरेक्ट टैक्स कम चुकाना पड़ेगा.
- किसी भी ईटीएफ को चुनते समय लो ट्रैकिंग एरर महत्वपूर्ण फैक्टर है. इससे इंडेक्स की तुलना में मिलने वाले रिटर्न का अंतर कम करने में मदद मिलती है. आमतौर पर अंडरलाइंग सिक्योरिटीज के मुताबिक 0-2 फीसदी का ट्रैकिंग एरर आदर्श माना जाता है.
- किसी ईटीएफ का चुनाव करते सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर अंडरलाइंग सिक्योरिटीज है क्योंकि रिटर्न इसी के परफॉरमेंस पर निर्भर होता है.
भारत में तेजी से बढ़ा है ETF के प्रति निवेशकों का रूझान
दुनिया भर में ईटीएफ के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ रहा है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले दस वर्षों में दुनिया भर में ईटीएफ एयूएम 19 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा है. 2020 में यह 7.7 लाख करोड़ डॉलर (562 लाख करोड़ रुपये) का लेवल पार कर दिया है. भारत की बात करें तो पिछले पांच वर्षों में ईटीएफ एयूएम 65 फीसदी सीएजीआर से बढ़ा है और वित्त वर्ष 2016 में कुल एयूएम (एसेट अंडर मैनेजमेंट) में ईटीएफ की हिस्सेदारी 2 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2021 में 10 फीसदी हो गई. दिलचस्प तथ्य यह भी है कि ईटीएफ में 90 फीसदी निवेश इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर्स (मुख्य रूप से ईपीएफओ) का है.
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