इसमें हम कुछ ऐसी बाते जानेंगे जिसका आप थोडासा ध्यान रखेंगे तो कोई भी गलत ट्रेड लेने से आप खुद को बचा सकते है | इसमें निचे दिए गए तीन चीजोंका ध्यान रखना बहोत जरुरी है|अगले दिन का मार्किट चालू होने से पहले अगर आप इन तीनो चीजों पे ध्यान रखोगे तो आपकी ट्रेडिंग लाभदायक होने से कोई नहीं रोक सकता |
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शेयर मार्किट में ट्रेडिंग करने के लिए ट्रेडिंग सेटअप (Trading Setup) के बारे में जानकारी होना बहोत ही जरुरी है | कोई भी ट्रेडिंग सेटअप बिना जानकारी पूरा नहीं जो सकता | इस आर्टिकल में आप एक ऐसे ट्रेडिंग सेटअप (Trading Setup) के बारे में जानेंगे जो आपकी शेयर मार्किट ट्रेडिंग को आसान बना देगा |हर किसी को पता है की शेयर मार्किट में बिना जानकारी हासिल किये ट्रेड करना मतलब अपने पैसे का नुकसान करना |अगर हम सहीसे अध्ययन करके ट्रेडिंग करे तो किसी भी नुकसान की संभावना कम रहती है |
आज हम एक ऐसे ही ट्रेडिंग सेटअप (Trading Setup monitors) के बारे में बात करेंगे जिसकी वजह से आप अगले दिन की ट्रेडिंग दिन के लिए बिलकुल तैयार रहेंगे |आपको कुछ चींजो का ख्याल रखना होगा ताकि आपको अगले दिन की मार्किट का हालचाल का अंदाजा आ जाये |इस ट्रेडिंग सेटअप को हम दिन का ट्रेडिंग सेटअप (Day Trading Setup) भी कह सकते है|
ग्लोबल मार्किट सेनारिओ (Global Market Scenario for Trading Setup)
आपको पता होगा की ग्लोबल मार्किट का बहुत बड़ा असर हमरे इंडियन मार्किट पे पड़ता है | इसीलिए हमें ग्लोबल मार्किट की हलचल के बारे में पता होना चाहिए | हमें ग्लोबल मार्किट के तरफ हमेशा नज़र रखनी चाहिए की वहा पे बड़ी हलचल या कोई नया समाचार तो नहीं है | इससे हमें थोड़ा सा अंदाजा आजाता है की इंडियन शेयर मार्किट की कल की ओपनिंग किस तरफ होने वाली है और फिर हम उसी तरह के शेयर्स अगले दिन के अगले दिन के ट्रेडिंग सेटअप (Trading Setup) के लिए चुन सकते है|
दोस्तों हमारा मार्किट हर दिन ३.३० मिनट में बंद हो जाता है | उसी दिन शाम को ७.३० मिनट पर अमेरिका और बाकी मार्किट चालू हो जाते है | तभी हमें ग्लोबल मार्किट की हालचाल पर नज़र रखनी है | हमें ध्यान रखना है की ग्लोबल मार्किट का प्रारम्भ सकारात्मक है या नकारात्मक | हमें शाम के ९.३० मिनट पर ग्लोबल मार्किट सेनारिओ की जाँच करनी है ताकि हमें ग्लोबल मार्किट की दिशा पता चले | अगर दोस्तों ९.३० मिनट पर ग्लोबल मार्किट सकारात्मक है तो हमारा कल का मार्किट भी सकारात्मक हो सकता है, और अगर ग्लोबल मार्किट नकारात्मक है तो इंडियन मार्किट भी कल नकारात्मक हो सकता है|
स्टॉक्स का चुनाव (Stock Selection)
आपको हर दिन मार्किट बंद होने के बाद End Of The Day Study करनी होगी | आपको शेयर के बारे में जानना होगा | कुछ शेयर आपको चुनने होंगे जो आपको कल की ट्रेडिंग में सकारात्मक मूवमेंट दे | कल के दिन ट्रेडिंग करने के एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग लिए अपने पास शेयर की जानकारी पहले से ही होंनी चाहिए | आपके सारे शेयर की सूचि आपके पास तैयार होनी चाहिए ताकि कल जब मार्किट चालू हो तो आप अच्छेसे ट्रेडिंग कर सके |
शेयर का चुनाव एक बहुत ही जरुरी बिंदु है ट्रेडिंग में | आप की ग्लोबल मार्किट की अभ्यास के बाद आप अपने शेयर का चुनाव करके रखे,उन शेयर की सपोर्ट और रेसिस्टेन्स लेवल आपके पास होनी चाहिए ताकि आप उन शेयर में सही टाइम पे प्रवेश या निकास ले सके और मुनाफा कमा सके |
आप इस बात का ध्यान रखे की अगले दिन हमें उन्ही शेयर में ट्रेडिंग करना है जो आपने चुने हुवे है ताकि ट्रेडिंग लाभदायक हो | कोई भी बिना जानकारी वाला ट्रेड न ले जिसके बारे में पता नहीं है , नहीं तो वो ट्रेड नुकसान दिला सकता है |
अफोर्डेबल रिल्क
अगर सब कुछ आपकी रणनीति के मुताबिक ही रहा तो शेयरों की ट्रेडिंग से आप शानदार मुनाफा कमा सकते हैं लेकिन शेयर मार्केट में उतना ही रिस्क लेना चाहिए जितनी आपकी क्षमता हो. रिस्क का मतलब है कि आप कितनी पूंजी गंवाने की क्षमता रखते हैं. कभी भी ऐसे पैसे को निवेश करें जिसे आप गंवाना नहीं अफोर्ड कर सकते हैं. कोशिश करें कि शेयर मार्केट में ट्रेडि्ंग पिरामिड अप्रोच के साथ करें. रिस्क पिरामिड का मतलब है कि रिस्क के हिसाब से अपनी पूंजी को बांटकर ट्रेडिंग करना.
‘स्टॉप लॉस’ और ‘टेक प्रॉफिट’ के साथ एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग करें ट्रे़डिंग
ट्रेडिंग के दौरान भाव में उतार-चढ़ाव को लगातार ट्रैक करना लगभग असंभव है. चूकने पर भारी नुकसान भी हो सकता है और बंपर मुनाफा भी. हालांकि रिस्क मैनेज करने के लिए जरूरी है कि आप स्टॉप लॉस का इस्तेमाल करें और बाजार की विपरीत परिस्थितियों में अपने प्रॉफिट को सुरक्षित करें. स्टॉप लॉस का मतलब सौदा शुरू करने से पहले ऐसा प्राइस लेवल तय करना है जिसके नीचे आप रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ टेक प्रॉफिट एक लिमिट ऑर्डर है जिसका इस्तेमाल एक खास भाव पहुंचने पर मुनाफा कमाने के लिए किया जाता है.
ट्रेडिंग में संभवतः टाइम फैक्टर सबसे महत्वपूर्ण टूल है. बाजार को लेकर सटीक अनुमान से आप बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं. काफी समय पहले फॉरेक्स ट्रेडर्स को स्टॉक एक्सचेंज ऑफिसों से फॉरेक्स मार्केट के उतार-चढ़ाव की जानकारी लेनी होती थी लेकिन अब तकनीक का जमाना आ गया है जिससे ट्रेडर्स को रीयल टाइम में मार्केट डेटा मिल जाता है.
अपना रिसर्च करें
शेयरों की खरीद-बिक्री से पहले रिसर्च जरूर करना चाहिए. इससे आपको यह तय करने में आसानी होगी कि किस भाव पर आपको अपनी पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना है. शेयर मार्केट से पैसे बनाने के लिए हमेशा किस्मत ही नहीं, एनालिसिस भी बहुत महत्पूर्ण भूमिका निभाती है. बाजार के रूझानों की बजाय स्पष्ट संकेत मिलने पर ही ट्रेडिंग करें. फंडामेंटल रूप से मजबूत कंपनी में निवेश कपना बेहतर फैसला है.
अगर आप शेयरों की खरीद-बिक्री यानी ट्रेडिंग करते हैं तो आपको एक स्ट्रेटजी के साथ मार्केट में प्रवेश करना चाहिए. इससे आपको यह स्पष्ट रूप से पता रहेगा कि आप किस तरह से ट्रेड करना चाहिए. जब आप स्ट्रेटजी के हिसाब से चलेंगे तो न सिर्फ आपका समय बचेगा बल्कि आप बड़े स्तर पर चीजों को देख-समझ सकेंगे जो समय, इकनॉमिक ट्रेंड और मार्केट एक्सपेक्ट्स के हिसाब से बदलती रहती हैं.
(Article: Marc एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग Despallieres, Chief Strategy & Trading Officer at Vantage)
Trading Tips: बाजार में सही लेवल पर एंट्री करने का क्या है आसान फॉर्मूला? जानें अनिल सिंघवी से टिप्स
Index Trading Tips: इंडेक्स में ट्रेड करने वालों के लिए यह समझना जरूरी है कि पहले सपोर्ट लेवल और इंम्पॉर्टेंट लेवल में क्या अंतर है और इन लेवल पर कब खरीददारी करनी चाहिए. इस पर ही मार्केट गुरु अनिल सिंघवी आपको टिप्स दे रहे हैं.
Index Trading Tips: इंडेक्स पर ट्रेडिंग के लिए ट्रेडर्स को सही फॉर्मूला पता होना बहुत जरूरी है. इंडेक्स ट्रेडिंग स्टॉक ट्रेडिंग के मुकाबले कम बड़ा उतार-चढ़ाव देखता है, लेकिन यहां अमाउंट बड़ा होता है, जिसके चलते ट्रेडर्स को अपनी स्ट्रेटेजी सोच-समझकर बनानी चाहिए. अब अगर निफ्टी इंडेक्स (Nifty Index Trading) की बात करें तो एंट्री करने के लिए आपको सही लेवल पता होने चाहिए. इंडेक्स में ट्रेड करने वालों के एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग लिए यह समझना जरूरी है कि पहले सपोर्ट लेवल और इंम्पॉर्टेंट लेवल में क्या अंतर है और इन लेवल पर कब खरीददारी करनी चाहिए. इस पर ही Zee Business के मैनेजिंग एडिटर और मार्केट गुरु अनिल सिंघवी आपको टिप्स दे रहे हैं.
1. प्राइस सेक्शन के हिसाब से पहला फॉर्मूला
जब आप करेक्शन के बाद ऊपर जाते हैं और आपको क्लोजिंग डे हाई पर मिलती है, तो इसका बड़ा फायदा होता है कि अगले दिन आपको ऊपर गैप मिलता है. तो आपको पता होता है कि आपका सपोर्ट लेवल क्या है. बाजार अगर डे लो पर बंद होता है तो आपको बॉटम लेवल भी पता होता है. आपको गैप से खुलने पर पहले सपोर्ट पर ही खरीदारी करनी चाहिए. आप कल की रिकवरी और आज का गैपअप देखकर पहले सपोर्ट लेवल पर खरीद सकते हैं.
नीचे की रिस्क और सेंटिमेंट के दम पर बाजार में कैसे करें ट्रेड?
बाजार में सही लेवल पर एंट्री करने का क्या है आसान फॉर्मूला?#Index में ट्रेड करने वाले जरूर देखें @AnilSinghvi_ का ये वीडियो.
2. सेंटीमेंट पर आधारित फॉर्मूला
दूसरा फॉर्मूला सेंटीमेंट को लेकर चल सकते हैं. अगर आपका सेंटीमेंट इतना मजबूत नहीं है कि जहां खुले वहां से ले लिया. अगर आपको पता है कि चार-पांच सेशन से खुलने पर हमेशा नीचे जा रहे एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग हैं, तो सेंटीमेंट कमजोर रहेगा. लेकिन रिकवरी आने से कॉन्फिडेंस बढ़ता है तो सेंटीमेंट मजबूत होगा. यहां आप पहले सपोर्ट लेवल पर ले सकते हैं. अगर आपका सेंटीमेंट इंप्रूव नहीं है तो आपको इंपॉर्टेंट लेवल पर खरीदारी करनी चाहिए. पहला सपोर्ट लेवल जल्दी आता है, वहीं, इंपॉर्टेंट लेवल थोड़ा नीचे आता है. यह मजबूत डेटा पर आधारित होता है.
ये ध्यान रखें कि अगर आप ट्रेडिंग में सही एंट्री पॉइंट चुनते हैं तो आपका 80% काम तो ऐसे ही हो जाता है. अगर सही एंट्री पॉइंट नहीं रहा, तो आप बाकी फैक्टर्स में भले ही अच्छा कर रहे हों, लेकिन पैसा नहीं बनेगा.
शेयर मार्किट में Supply and Demand क्या हैं ? In Hindi
शेयर मार्किट में Supply and Demand क्या हैं ?
Table of Contents
हिंदी में Demand मतलम होता हैं मांग।
जब चार्ट पर प्राइस किसी एक लेवल को छूकर बार-बार support लेकर ऊपर चला जाता हैं, उसे हम Demand कहते हैं।
जब किसी वस्तु की Supply कम हो और demand अधिक हो तब वस्तु का भाव बढ़ता हैं जिसे हम uptrend कहते हैं।
जब किसी वस्तु demand कम हो और supply अधिक हो तब उस वस्तु का भाव घटता हैं जिसे हम downtrend कहते हैं।
जब किसी वस्तु की supply और demand बराबर हो तब भाव एक range में चलता हैं जिसे हम sideways trend कहते हैं।
Demand Zone
Supply Zone
तो यह ते शेयर मार्किट में technical analysis के Supply और Demand Zone.
Demand और Supply के मदत से share market में trader को यह पता चलता हैं की, इस level zone या जगह से price निचे जायेगा या ऊपर।
जिससे उन्हें trading करने में आसानी होती हैं।
निष्कर्ष
आशा हैं की आप को Demand और Supply क्या हैं और वह कैसे काम करता हैं हिंदी में।
तो एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग आप इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।
Q.1.शेयर मार्किट में Supply and Demand क्या हैं?
Ans: शेयर मार्किट में Supply and Demand टेक्निकल एनालिसिस का मुख्य आधार हैं।
जिसके आधार पर technical chart बनते हैं और बाजार में Price का Movement होता हैं।
Q.2.शेयर मार्किट में Supply क्या होता हैं ?
Ans: जब चार्ट पर प्राइस किसी एक लेवल को छूकर बार-बार resistance लेकर निचे जाता हैं, उसे हम Supply कहते हैं।
Q.3.शेयर मार्किट में Demand क्या होता हैं ?
Ans: जब चार्ट पर प्राइस किसी एक लेवल को छूकर बार-बार support लेकर ऊपर चला जाता हैं, उसे हम Demand कहते हैं।
Q.4.शेयर बाजार में Supply और Demand का उपयोग।
Ans: Demand और Supply के मदत से share market में trader को यह पता चलता हैं की, इस level zone या जगह से price निचे जायेगा या ऊपर।
पिवट पॉइंट्स क्या होते हैं?
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पिवट पॉइंट का पता तकनीकी विश्लेषण के जरिए लगाया जाता है और इससे बाजार के ओवरऑल ट्रेंड का पता चलता है. सीधे शब्दों में बताएं तो यह पिछले ट्रेडिंग सेशन में सबसे ऊंचे स्तर, निचले स्तर और क्लोजिंग प्राइस का एवरेज यानी औसत आंकड़ा होता है. अगर अगले दिन के ट्रेडिंग सेशन बाजार इस पिवट पॉइंट के ऊपर जाता है, तो कहा जाता है कि बाजार बुलिश सेंटीमेंट यानी तेजी दिखा रहा है, वहीं, अगर बाजार इस पॉइंट से नीचे ही रह जाता है एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग तो इसे बेयरिश यानी गिरावट वाला मार्केट माना जाता है. ऐसे मार्केट में निवेशकों को अपनी रणनीति बदलने की सलाह दी जाती है.
जब पिवट पॉइंट्स के साथ दूसरे टेक्निकल टूल्स को मिलाकर गणना की जाती है, तो इससे उस असेट के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ-साथ किसी शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग सेशन में सपोर्ट और रेजिस्टेंट लेवल का पता भी लगता है.
पिवट पॉइंट्स कैसे कैलकुलेट किए जाते हैं?
पिवट पॉइंट कैलकुलेट करने के कई तरीके हैं, लेकिन सबसे आम तरीका फाइव-पॉइंट सिस्टम है. इस सिस्टम में पिछले ट्रेडिंग सेशन के ऊंचे, सबसे निचले स्तर, और क्लोजिंग प्राइस के साथ दो सपोर्ट लेवल और दो रेजिस्टेंस लेवल को लेकर कैलकुलेशन किया जाता है.
पिवट पॉइंट कैलकुलेट करने का समीकरण ये है :
पिवट पॉइंट = (पिछले सत्र का ऊंचा स्तर + पिछले सत्र का निचला स्तर + पिछला क्लोजिंग प्राइस) 3 से विभाजन (/)
सपोर्ट लेवल कैलकुलेट करने का समीकरण :
सपोर्ट 1 = (पिवट पॉइंट X 2) − पिछले सत्र का ऊंचा स्तर
सपोर्ट 2 = पिवट पॉइंट − (पिछले सत्र का ऊंचा स्तर − पिछले सत्र का निचला स्तर)
रेजिस्टेंस लेवल कैलकुलेट करने के लिए समीकरण :
रेजिस्टेंस 1 = (पिवट पॉइंट X 2) − पिछले सत्र का निचला स्तर
टाइम फ्रेम
ट्रेडर्स आमतौर पर पिवट पॉइंट्स का इस्तेमाल छोटे टाइम फ्रेम का चार्ट बनाने के लिए करते हैं. या तो ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे या फिर कम से कम 15 मिनट का चार्ट बनाया जा सकता है.
पिवट पॉइंट पांच तरह के होते हैं. फाइव-पॉइंट सिस्टम में स्टैंडर्ड पिवट पॉइंट (Standard Pivot Point) का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा बाकी चार पिवट पॉइंट्स को- Camarilla Pivot Point, Denmark Pivot Point, Fibonacci Pivot Point और Woodies Pivot Point कहते हैं.
पिवट पॉइंट्स दूसरे इंडिकेटर्स या संकेतकों से अलग कैसे है?
पिवट पॉइंट सिस्टम मौजूदा प्राइस में मूवमेंट पर निर्भक रहने के बजाय, पिछले सत्र के डेटा का इस्तेमाल करता है. इस अप्रोच से ट्रेडर्स को आगे की संभावनाओं का जल्दी पता चलता है और वो इसके हिसाब से स्ट्रेटजी तैयार कर सकते हैं. ये पिवट पॉइंट अगले ट्रेडिंद सेशन तक स्टैटिक यानी स्थिर रहते हैं.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक प्राइस लेवल के साथ ट्रेंड के विरुद्ध ट्रेडिंग पिवट पॉइंट्स ज्यादा बेहतर मदद बस इंट्रा-डे ट्रेडिंग में ही करते हैं क्योंकि ये बहुत ही सीधी गणना पर आधारित होते हैं और इस वजग से स्विंग ट्रेडिंग में काम नहीं आ सकते. साथ ही, अगर करेंसी में प्राइस मूवमेंट बहुत ज्यादा होने लगी तो इससे पिवट पॉइंट्स के अनुमान व्यर्थ हो सकते हैं. ऐसे में जब बाजार में ज्यादा वॉलेटिलिटी हो यानी कि ज्यादा उतार-चढ़ाव हो तो निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वो पिवट पॉइंट्स पर भरोसा न करें क्योंकि प्राइस मूवमेंट किसी भी कैलकुलेशन स्ट्रेटजी को धता बता सकता है.
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