सब-ब्रोकर बनना चाहते हैं? इन बातों का रखें ध्यान : एंजेल ब्रोकिंग


भारत में इस समय स्टॉक ट्रेडिंग ट्रेंड में है। यह ट्रेंड असली है और यदि आप अच्छा-खासा कमाना चाहते हैं तो आपको उस पर भरोसा करना होगा। आप मेज पर बैठे नहीं रहना चाहते। आपको भी कुछ कमाना है। आप भी बहुत कुछ करना चाहते हैं! दूसरे शब्दों में, सब-ब्रोकिंग आपके लिए बेस्ट है।
एक सब-ब्रोकर वह होता है जो निवेशकों को बाजारों में प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री में मदद करता है। सब-ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज का ट्रेडिंग मेंबर नहीं है, लेकिन वह ग्राहकों को सेवाएं देने में स्टॉक ब्रोकरों की सहायता करता है।
एक बार जब आप एक सब-ब्रोकर बनने का फैसला कर लेते हैं, तो जानिए कि आपको क्या करना होगा:
1. योग्यता: आपकी न्यूनतम योग्यता 10 + 2 या हायर सेकंडरी सर्टिफिकेट होगी। हालांकि, कुछ ब्रोकर आपको अपने सब-ब्रोकर के रूप में नियुक्त करने से पहले कम से कम स्नातक की डिग्री पसंद कर सकते हैं। वित्तीय बाजारों के बारे में आपको ज्ञान होना चाहिए। कई परीक्षाएं हैं जो आप एक अच्छा ब्रोकर बनने के लिए योग्यता साबित करने के लिए दे सकते हैं। कुछ प्रसिद्ध परीक्षाएँ हैं, एनसीएफएम (एनएसई सर्टिकेशन ऑन सिक्योरिटी मार्केट्स), बीसीएसएम (बीएसई सर्टिफिकेशन ऑन सिक्योरिटी मार्केट्स), एनआईएसएम कोर्सेस, आदि।
2. दस्तावेजीकरण: जब आप और आपके ब्रोकर की योग्यता मिल जाती हैं तो आपको दस्तावेजीकरण करना होगा। इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड और एजुकेशन प्रूफ (जैसे कुछ ब्रोकर 10 + 2 की शैक्षिक योग्यता को अनिवार्य करते हैं) जैसे कुछ आईडी दस्तावेज देने होंगे। इसके अलावा, आपके निवास और आपके कार्यालय के पते का प्रमाण तस्वीरों के साथ और सीए के रेफरेंस लेटर की आवश्यकता होगी। जांच लें कि क्या इसके अलावा भी कुछ आवश्यक है।
3. बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें: आपको कभी भी ऐसा कुछ नहीं बेचना चाहिए, जिसे कोई खरीदने को राजी न हो। इस वजह से ब्रोकरेज फर्मों के बारे में गहन रिसर्च करें। निवेशक किसे पसंद कर रहे हैं, जानने की कोशिश करें। आपके ब्रोकर के पास अच्छी ब्रांड इक्विटी और रिकॉल वैल्यू होनी चाहिए। नए ग्राहक हासिल करने में मददगार होगा। आम तौर पर, ग्राहक उन फर्मों को प्राथमिकता देते हैं जिनके पास फ्लैट फी स्ट्रक्चर, वैल्यू-एडेड सर्विसेस होती हैं, और स्पॉट-ऑन सिफारिशों भी देती हैं।
4. आवश्यकताओं को जांच लें: सब-ब्रोकर बनने की कुछ शर्तें होती हैं जिन्हें आपको पूरा करना होगा। एक सब-ब्रोकर या मास्टर फ्रैंचाइज़ी मालिक के रूप में आपको लगभग 200 वर्ग फुट के ऑफिस स्पेस की आवश्यकता होगी। यह स्पेस आमतौर पर ब्रोकरेज फर्म पर निर्भर करता है, जिसके साथ आप जा रहे हैं। आपको लगभग बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें एक से दो लाख या उससे अधिक रुपए का रिफंडेबल शुल्क भी जमा करना होगा। अंत में अपने ब्रोकर की कमीशन स्ट्रक्चर जांच लें। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों के साथ और वर्क-फ्रॉम-होम विकल्प के साथ, व्यावसायिक स्पेस की आवश्यकता वैकल्पिक हो सकती है।
5. बुनियादी जानकारी दें: शुरुआत में कॉलबैक का अनुरोध करें। आपके व्यापार से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल पूछे जाएंगे, अन्य विवरण के साथ। यह सुनिश्चित करेगा कि आगे बढ़ने से पहले आप और आपके ब्रोकर दोनों एक-सा सोच रहे हैं।
6. रजिस्ट्रेशन फी और अकाउंट एक्टिवेशनः अंत में, आपको रजिस्ट्रेशन फी जमा करनी होगी। भुगतान करने के बाद आपको अपने खाते का बिजनेस टैग प्राप्त होगा। आपके ब्रोकर के आधार पर, आप और आपके कर्मचारी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, कस्टमर सपोर्ट और मार्केटिंग मैकेनिज्म पर ट्रेनिंग और जानकारी प्राप्त करेंगे।
भारत एक अरब से अधिक लोगों की आबादी का देश है। इसके बाद भी यहां रिटेल पार्टिसिपेशन बहुत कम है। शेयर बाजार सबसे अच्छे निवेश साधनों में से एक हैं। वे पारंपरिक निवेश उत्पादों की तुलना में बेहतर रिटर्न देने के लिए जाने जाते हैं। बढ़ते डिजिटाइजेशन और जागरूकता के साथ भारत में शेयर बाजारों में रिटेल पार्टिसिपेशन तेजी से बढ़ रही है। लेकिन अब भी पूरी क्षमता का दोहन नहीं हो सका है। इससे लोगों को सब-ब्रोकर के पेशे को अपनाने के पर्याप्त अवसर मिलेंगे।

शेयर बाजार में टिप्स और स्ट्रैटजी के साथ कामयाबी के लिए चाहिए लंबी प्लानिंग

इंटरनेट के युग में सभी अच्छे ब्रोकरेज फर्म के ऐप उपलब्ध हैं और सभी डिस्काउंट ब्रोकर की तरह कम ब्रोकरेज का लाभ दे रहे हैं। ये मार्जिन फंडिंग की भी सुविधा देते हैं। लगभग 10-12 फीसद सालाना ब्याज पर चुनिंदा शेयर खरीदने का अवसर है।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। शेयर बाजार में पैसे कैसे लगाएं इस प्रश्न पर हर किसी की अपनी-अपनी राय होती है जो बहुत-से लोग अक्सर जोरदार दावे के साथ सामने रखते हैं। उनमें बहुत से सही भी होते हैं इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन वे हर बार सही या फिर गलत होंगे यह समझना भूल है। इसकी बड़ी वजह शेयर बाजार का पल-प्रतिपल बदलना और अब तो देश-दुनिया के राजनीतिक-आर्थिक हालात भी बहुत तेजी से बदलते हैं लिहाजा हमंे यह समझना होगा कि शेयर बाजार में आगे रहने के लिए लंबी रेस का घोड़ा बनना है। यह बात इक्वीटी ही नहीं फ्यूचर-आप्शन पर भी लागू होता है। ऐसे में आपको टिप्स और स्ट्रैटेजी के साथ लंबी प्लानिंग करनी होगी।

Stock Market Investment: what is stop loss order

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लंबी प्लानिंग का अर्थ कम से कम 6 महीने का समय है जिस दौरान अच्छे शेयर खासी गिरावट के बावजूद वापस सही स्तर पर आ जाते हैं। अब सवाल उठता है कि अच्छे शेयर कौन हैं? इसके लिए आप निफ्टी के शेयरों पर वेटेज के हिसाब से ध्यान दें। आपको रिलायंस, एचडीएफसी बैंक, टीसीएल, इन्फोसिस, एल एण्ड टी, यूनिलीवर जैसे कुछ नाम मिलेंगे जिनके बारे में ज्यादा आर एण्ड डी नहीं करना होगा। अब आप खुद इन शेयरों के ग्राफ देखें तो पता चलेगा कि इन शेयरों ने पिछले 6 महीनों में बेशक 25 फीसद गिरावट देखी हो पर धीरे-धीरे सही स्तर पर वापस आ जाते हैं। इनके अतिरिक्त मोनोपॉली के कुछ शेयर खरीद सकते हैं जैसे एनटीपीसी और पावरग्रिड। जरा सोचिए, देश में इनके विकल्प हैं क्या? फिलहाल एक भी नहीं है।

लंबी प्लानिंग करने और शेयरों के चुनाव के बाद यह जानना जरूरी है कि किस अनुपात में और कब-कब खरीदें। चूंकि बताए गए शेयरों का पोर्टफोलिया छोटा होगा इसलिए इनमें प्रत्येक पर हर दिन एक बार नजर डालना कठिन ना होगा चाहे आप किसी और रोजगार में क्यों ना हों। आप देखेंगे कि आए दिन इनमें किसी-ना-किसी शेयर का दाम गिरेगा और वह शेयर कम दाम पर आपकी झोली में आ गिरेगा। इस तरह 10 शेयरों के पोर्टफोलियो में आप केवल धैर्य रखने से 10 फीसद तक बचा लेंगे। और शेयर बाजार में कुछ भी बचा लेना और टिका रहना ही सबसे बड़ी बात है। इसके उलट यदि आप आए दिन नए-नए टिप्स पर कदम उठाएंगे तो मुमकिन ही आपके पास भंगार की दुकान होगी और इसमें मौजूद शेयरों के दाम इतने गिरे होंगे कि उन्हें रखना और बेचना दोनों कठिन होगा।

ऊपर बताए शेयरों के अतिरिक्त भी शेयर खरीदने में हर्ज नहीं है। लेकिन उनके बारे में अधिक से अधिक और नियमित रूप से जानकारी रखना उचित होगा। किस सेक्टर में कब पैसे लगाएं बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें इसका ध्यान देना होगा। सेक्टर के हालात देख कर उसके किसी शेयर में पैसा लगाना बुद्धिमानी का काम है। मिसाल के तौर पर पिछले कुछ महीनों से आईटी सेक्टर कमजोर है तो अगले कुछ महीनों में उसमें बढ़त की संभावना अधिक है।

इंटरनेट के युग में सभी अच्छे ब्रोकरेज फर्म के ऐप उपलब्ध हैं और सभी डिस्काउंट ब्रोकर की तरह कम ब्रोकरेज का लाभ दे रहे हैं। इतना ही नहीं, मार्जिन फंडिंग की भी सुविधा देते हैं जिसका अर्थ बहुत कम ब्याज दर लगभग 10-12 फीसद सालाना पर चुनिंदा शेयर खरीदने का अवसर है। जानकारों से राय लेकर आप अच्छे शेयर में मार्जिन फंडिंग का लाभ ले सकते हैं।

सब-ब्रोकर कैसे बनें

New Delhi, 28 Aug 2020 : भारत में इस समय स्टॉक ट्रेडिंग ट्रेंड में है। पिछले महीने आपके मित्र ने इक्विटी में अपने कमाए लाभ की बात की थी और वह इस हफ्ते भी वही बात कर रहा था। लेकिन, आपने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिर आपके अंकल ने पूछा था कि क्या आपको शेयरों के बारे में कुछ भी जानकारी है? आपको जानकारी नहीं थी। लेकिन आपके दोस्त को थी। इस वजह से आपने अपने दोस्त से उन्हें कनेक्ट कर दिया। जब आपके पड़ोसी ने बताया कि उनका बच्चा किस तरह स्टॉक मार्केट से पैसा कमा रहा है और वह कितना अच्छा काम कर रहा है, आपकी पहली बार भौहें खड़ी हो गई थीं। तब से, आपने अनगिनत लोगों को शेयरों में अपनी रुचि दिखाते हुए सुना है।

हर महीने स्टॉक ब्रोकर से लाखों निवेशकों के जुड़ने की रिपोर्ट बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें आपके लिए अंतिम ट्रिपिंग पॉइंट था। यह ट्रेंड असली है और यदि आप अच्छा-खासा कमाना चाहते हैं तो आपको उस पर भरोसा करना होगा। आप मेज पर बैठे नहीं रहना चाहते। आपको भी कुछ कमाना है। आप भी बहुत कुछ करना चाहते हैं! दूसरे शब्दों में, सब-ब्रोकिंग आपके लिए बेस्ट है।

लेकिन, सब-ब्रोकर कैसे बना जा सकता है? यहां हम आपके लिए स्टेप गाइड लेकर आए हैं-

एक सब-ब्रोकर वह होता है जो निवेशकों को बाजारों में प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री में मदद करता है। सब-ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज का ट्रेडिंग मेंबर नहीं है, लेकिन वह ग्राहकों को सेवाएं देने में स्टॉक ब्रोकरों की सहायता करता है।

एक बार जब आप एक सब-ब्रोकर बनने का फैसला कर लेते हैं, तो जानिए कि आपको क्या करना होगा-

1. योग्यता: आपकी न्यूनतम योग्यता 10 + 2 या हायर सेकंडरी सर्टिफिकेट होगी। हालांकि, कुछ ब्रोकर आपको अपने सब-ब्रोकर के रूप में नियुक्त करने से पहले कम से कम स्नातक की डिग्री पसंद कर सकते हैं। वित्तीय बाजारों के बारे में आपको ज्ञान होना चाहिए। कई परीक्षाएं हैं जो आप एक अच्छा ब्रोकर बनने के लिए योग्यता साबित करने के लिए दे सकते हैं। कुछ प्रसिद्ध परीक्षाएँ हैं, एनसीएफएम (एनएसई सर्टिकेशन ऑन सिक्योरिटी मार्केट्स), बीसीएसएम (बीएसई सर्टिफिकेशन ऑन सिक्योरिटी मार्केट्स), एनआईएसएम कोर्सेस, आदि।

2. दस्तावेजीकरण: जब आप और आपके ब्रोकर की योग्यता मिल जाती हैं तो आपको दस्तावेजीकरण करना होगा। इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड और एजुकेशन प्रूफ (जैसे कुछ ब्रोकर 10 + 2 की शैक्षिक योग्यता को अनिवार्य करते हैं) जैसे कुछ आईडी दस्तावेज देने होंगे। इसके अलावा, आपके निवास और आपके कार्यालय के पते का प्रमाण तस्वीरों के साथ और सीए के रेफरेंस लेटर की आवश्यकता होगी। जांच लें कि क्या इसके अलावा भी कुछ आवश्यक है।

3. बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें: आपको कभी भी ऐसा कुछ नहीं बेचना चाहिए, जिसे कोई खरीदने को राजी न हो। इस वजह से ब्रोकरेज फर्मों के बारे में गहन रिसर्च करें। निवेशक किसे पसंद कर रहे हैं, जानने की बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें कोशिश करें। आपके ब्रोकर के पास अच्छी ब्रांड इक्विटी और रिकॉल वैल्यू होनी चाहिए। नए ग्राहक हासिल करने में मददगार होगा। आम तौर पर, ग्राहक उन फर्मों को प्राथमिकता देते हैं जिनके पास फ्लैट फी स्ट्रक्चर, वैल्यू-एडेड सर्विसेस होती हैं, और स्पॉट-ऑन सिफारिशों भी देती हैं।

4. आवश्यकताओं को जांच लें: सब-ब्रोकर बनने की कुछ शर्तें होती हैं जिन्हें आपको पूरा करना होगा। एक सब-ब्रोकर या मास्टर फ्रैंचाइज़ी मालिक के रूप में आपको लगभग 200 वर्ग फुट के ऑफिस स्पेस की आवश्यकता होगी। यह स्पेस आमतौर पर ब्रोकरेज फर्म पर निर्भर करता है, जिसके साथ आप जा रहे हैं। आपको लगभग एक से दो लाख या उससे अधिक रुपए का रिफंडेबल शुल्क भी जमा करना होगा। अंत में अपने ब्रोकर की कमीशन स्ट्रक्चर जांच लें। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों के साथ और वर्क-फ्रॉम-होम विकल्प के साथ, व्यावसायिक स्पेस की आवश्यकता वैकल्पिक हो सकती है।

5. बुनियादी जानकारी दें: शुरुआत में कॉलबैक का अनुरोध करें। आपके व्यापार से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल पूछे जाएंगे, अन्य विवरण के साथ। यह सुनिश्चित करेगा कि आगे बढ़ने से पहले आप और आपके ब्रोकर दोनों एक-सा सोच रहे हैं।

6. रजिस्ट्रेशन फी और अकाउंट एक्टिवेशनः अंत में, आपको रजिस्ट्रेशन फी जमा करनी होगी। भुगतान करने के बाद आपको अपने खाते का बिजनेस टैग प्राप्त होगा। आपके ब्रोकर के आधार पर, आप और आपके कर्मचारी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, कस्टमर सपोर्ट और मार्केटिंग मैकेनिज्म पर ट्रेनिंग और जानकारी प्राप्त करेंगे।
भारत एक अरब से अधिक लोगों की आबादी का देश है। इसके बाद भी यहां रिटेल पार्टिसिपेशन बहुत कम है। शेयर बाजार सबसे अच्छे निवेश साधनों में से एक हैं। वे पारंपरिक निवेश उत्पादों की तुलना में बेहतर रिटर्न देने के लिए जाने जाते हैं। बढ़ते डिजिटाइजेशन और जागरूकता के साथ भारत में शेयर बाजारों में रिटेल पार्टिसिपेशन तेजी से बढ़ रही है। लेकिन अब भी पूरी क्षमता का दोहन नहीं हो सका है। इससे लोगों को सब-ब्रोकर के पेशे को अपनाने के पर्याप्त अवसर मिलेंगे। तो आप किसका इंतज़ार कर रहे हैं?

Investment Tips: सरकार को उधार दें, ब्रोकरेज बचाकर 40 साल तक कमाएं मोटा मुनाफा

Investment Tips: एक बुद्धिमान निवेशक हमेशा नई तकनीकों को अपनाता है, जो आर्थिक लेनदेन को सरल और कम जटिल बनाती हैं.

Investment Tips: एक बुद्धिमान निवेशक हमेशा नई तकनीकों को अपनाता है, जो आर्थिक लेनदेन को सरल और कम जटिल बनाती हैं.

Investment Tips: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI, आरबीआई) ने हाल ही में रिटेल डायरेक्ट स्कीम (RDS, आरडीएस) की शुरुआत की. इसके ज . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : November 29, 2021, 17:03 IST

नई दिल्ली. सरकार विकास कार्यों और अपने घाटे की पूर्ति के लिए अक्सर बाजार से पैसा उठाती है. इसमें बड़े निवेशक या फंड हाउस ही निवेश करते हैं, लेकिन अब सरकार ने रिटेल यानी सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. इससे गवर्नमेंट सिक्युरिटी (Government Decurity) यानी जीसेक (G-Sec) में पैसा लगाना आसान हो गया है.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में रिटेल डायरेक्ट स्कीम (RDS, आरडीएस) की शुरुआत की. इसके जरियए रिटेल इन्वेस्टर को सरकारी प्रतिभूतियों (GSec) में निवेश करने के लिए सीधा रास्ता हासिल हो रहा है. इन प्रतिभूतियों (Securities) में केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां, ट्रेजरी, राज्य विकास ऋण (एसडीएल) और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड शामिल हैं. इनमें पैसा लगाकर 40 साल तक एक जैसा ब्याज पा सकते हैं.
यह भी पढ़ें: Naukari Ki Baat : टीचर हैं तो ई-लर्निंग, सेल्स में सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसे कोर्सेस से अपने आपको अपडेट करें

यह है आरडीएस के फायदे
विशेषज्ञ कहते हैं कि आरडीएस में निवेशकों को बेहतर तरलता हासिल हो जाएगी. निवेश सलाहकार हरिगोपाल पाटीदार कहते हैं कि इस योजना का इस्तेमाल करने से रिटेल इन्वेस्टर के लिए खरीदी गई गवर्नमेंट सिक्युरिटी बेचना आसान हो जाएगा. पहले ब्रोकर और एक्सचेंज की प्रणाली में सेकेंडरी मार्कट (secondary market) की तरलता काफी कम थी. सीए वीरेंद्र खटीक कहते हैं कि जब आप एक्सचेंज और ब्रोकर के जरिये बॉन्ड खरीदते हैं तो आपको ब्रोकरेज शुल्क (Brokerage Fee) देना पड़ता है. गिल्ट म्युचुअल फंड (Gilt Mutual Fund) में भी एक्सपेंस रेश्यो की शक्ल में हर साल कुछ शुल्क भरना पड़ता है. मगर सीधे निवेश की योजना आरडीएस में कुछ भी नहीं देना पड़ता.

मनचाहे वक्त तक के लिए कर सकते हैं निवेश
जी-सेक में आम तौर पर 10, 15, 30 या 40 साल की मैच्योरिटी अवधि (Maturity Period) होती है. लेकिन कोई व्यक्ति जी-सेक में बची हुई अवधि जैसे 11, 16 या ऐसे ही साल के लिए भी रकम लगाने की इच्छा रख सकता है तो उसे यह प्रतिभूतियां (Securities) सेकेंडरी मार्केट से ही खरीदनी पड़ेंगी.

10 साल से ज्यादा के वक्त में सबसे अच्छी स्टेबल इनकम वाली स्कीम
स्थिर आय वाली बहुत कम योजनाओं की अवधि 10 साल से ज्यादा होती है. उनमें से कुछ लंबी अवधि के लिए दरें रोकने या लॉक-इन करने की सुविधा देते हैं. शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से बचने वाले निवेशक लंबी अवधि के लिए ब्याज दरें लॉक-इन करने के उद्देश्य से इन प्रतिभूतियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह उन्हें बाजार की तयशुदा गिरावट से बचने का मौका मिल जाता है. लिहाजा, जी-सेक का इस्तेमाल ब्याज दरों को 40 साल तक के लिए लॉक-इन करने में किया जा सकता है.

तोहफे में भी दे सकते हैं जी-सेक
जो लोग रिटायरेमेंट प्लान बना रहे हैं या जो लोग पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वे इनका फायदा उठा सकते हैं. जी-सेक में छमाही भुगतान मिलता है और उन निवेशकों के लिए ये कारगर साबित होंगे, जो नियमित रूप से कैश फ्लो चाहते हैं. जी-सेक तोहफे में भी दी जा सकती हैं. आज से दो दशक बाद यदि ब्याज दरें नीचे चली गईं तो आपकी संतानें आपका धन्यवाद अदा करेंगी क्योंकि उस समय भी उन्हें ऊंची दर पर ब्याज देने वाले सरकारी बॉन्ड आपकी तरफ से तोहफे में मिले होंगे.

मैच्योरिटी से पहले जी-सेक भुनाने में जोखिम
आम धारणा यही है कि जी-सेक में किसी तरह का जोखिम नहीं होता. लेकिन असल में यह धारणा पूरी तरह भ्रामक है. क्वांटम म्युचुअल फंड में फंड प्रबंधक पंकज पाठक बताते हैं कि जी-सेक में किसी तरह का क्रेडिट जोखिम नहीं होता मगर मार्क-टु-मार्केट जोखिम इसमें बिल्कुल होता है.’ मान लीजिए कि आप 15 साल की अवधि के बॉन्ड खरीदते हैं मगर तीन साल बाद ही इन्हें बेचकर बाहर निकलने का फैसला लेते हैं. बेशक उस समय ब्याज दरें पहले के मुकाबले ऊपर चल रही हों मगर आपको जो कीमत मिलेगी, उससे पिछले दो साल में आपके पास जमा हुई ब्याज आय पूरी तरह साफ हो जाएगी. आपको किसी भी लक्ष्य के लिहाज से जितने साल के लिए निवेश करना है उसके आसपास की ही परिपक्वता अवधि रखें. इस तरह आप रुक-रुक कर लगने वाले मार्क-टु-मार्केट झटकों से बच जाएंगे.

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Investment Tips: सरकार को उधार दें, ब्रोकरेज बचाकर 40 साल तक कमाएं मोटा मुनाफा

Investment Tips: एक बुद्धिमान निवेशक हमेशा नई तकनीकों को अपनाता है, जो आर्थिक लेनदेन को सरल और कम जटिल बनाती हैं.

Investment Tips: एक बुद्धिमानी से ब्रोकरेज फर्म चुनें बुद्धिमान निवेशक हमेशा नई तकनीकों को अपनाता है, जो आर्थिक लेनदेन को सरल और कम जटिल बनाती हैं.

Investment Tips: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI, आरबीआई) ने हाल ही में रिटेल डायरेक्ट स्कीम (RDS, आरडीएस) की शुरुआत की. इसके ज . अधिक पढ़ें

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  • Last Updated : November 29, 2021, 17:03 IST

नई दिल्ली. सरकार विकास कार्यों और अपने घाटे की पूर्ति के लिए अक्सर बाजार से पैसा उठाती है. इसमें बड़े निवेशक या फंड हाउस ही निवेश करते हैं, लेकिन अब सरकार ने रिटेल यानी सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. इससे गवर्नमेंट सिक्युरिटी (Government Decurity) यानी जीसेक (G-Sec) में पैसा लगाना आसान हो गया है.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में रिटेल डायरेक्ट स्कीम (RDS, आरडीएस) की शुरुआत की. इसके जरियए रिटेल इन्वेस्टर को सरकारी प्रतिभूतियों (GSec) में निवेश करने के लिए सीधा रास्ता हासिल हो रहा है. इन प्रतिभूतियों (Securities) में केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां, ट्रेजरी, राज्य विकास ऋण (एसडीएल) और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड शामिल हैं. इनमें पैसा लगाकर 40 साल तक एक जैसा ब्याज पा सकते हैं.
यह भी पढ़ें: Naukari Ki Baat : टीचर हैं तो ई-लर्निंग, सेल्स में सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसे कोर्सेस से अपने आपको अपडेट करें

यह है आरडीएस के फायदे
विशेषज्ञ कहते हैं कि आरडीएस में निवेशकों को बेहतर तरलता हासिल हो जाएगी. निवेश सलाहकार हरिगोपाल पाटीदार कहते हैं कि इस योजना का इस्तेमाल करने से रिटेल इन्वेस्टर के लिए खरीदी गई गवर्नमेंट सिक्युरिटी बेचना आसान हो जाएगा. पहले ब्रोकर और एक्सचेंज की प्रणाली में सेकेंडरी मार्कट (secondary market) की तरलता काफी कम थी. सीए वीरेंद्र खटीक कहते हैं कि जब आप एक्सचेंज और ब्रोकर के जरिये बॉन्ड खरीदते हैं तो आपको ब्रोकरेज शुल्क (Brokerage Fee) देना पड़ता है. गिल्ट म्युचुअल फंड (Gilt Mutual Fund) में भी एक्सपेंस रेश्यो की शक्ल में हर साल कुछ शुल्क भरना पड़ता है. मगर सीधे निवेश की योजना आरडीएस में कुछ भी नहीं देना पड़ता.

मनचाहे वक्त तक के लिए कर सकते हैं निवेश
जी-सेक में आम तौर पर 10, 15, 30 या 40 साल की मैच्योरिटी अवधि (Maturity Period) होती है. लेकिन कोई व्यक्ति जी-सेक में बची हुई अवधि जैसे 11, 16 या ऐसे ही साल के लिए भी रकम लगाने की इच्छा रख सकता है तो उसे यह प्रतिभूतियां (Securities) सेकेंडरी मार्केट से ही खरीदनी पड़ेंगी.

10 साल से ज्यादा के वक्त में सबसे अच्छी स्टेबल इनकम वाली स्कीम
स्थिर आय वाली बहुत कम योजनाओं की अवधि 10 साल से ज्यादा होती है. उनमें से कुछ लंबी अवधि के लिए दरें रोकने या लॉक-इन करने की सुविधा देते हैं. शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से बचने वाले निवेशक लंबी अवधि के लिए ब्याज दरें लॉक-इन करने के उद्देश्य से इन प्रतिभूतियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस तरह उन्हें बाजार की तयशुदा गिरावट से बचने का मौका मिल जाता है. लिहाजा, जी-सेक का इस्तेमाल ब्याज दरों को 40 साल तक के लिए लॉक-इन करने में किया जा सकता है.

तोहफे में भी दे सकते हैं जी-सेक
जो लोग रिटायरेमेंट प्लान बना रहे हैं या जो लोग पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वे इनका फायदा उठा सकते हैं. जी-सेक में छमाही भुगतान मिलता है और उन निवेशकों के लिए ये कारगर साबित होंगे, जो नियमित रूप से कैश फ्लो चाहते हैं. जी-सेक तोहफे में भी दी जा सकती हैं. आज से दो दशक बाद यदि ब्याज दरें नीचे चली गईं तो आपकी संतानें आपका धन्यवाद अदा करेंगी क्योंकि उस समय भी उन्हें ऊंची दर पर ब्याज देने वाले सरकारी बॉन्ड आपकी तरफ से तोहफे में मिले होंगे.

मैच्योरिटी से पहले जी-सेक भुनाने में जोखिम
आम धारणा यही है कि जी-सेक में किसी तरह का जोखिम नहीं होता. लेकिन असल में यह धारणा पूरी तरह भ्रामक है. क्वांटम म्युचुअल फंड में फंड प्रबंधक पंकज पाठक बताते हैं कि जी-सेक में किसी तरह का क्रेडिट जोखिम नहीं होता मगर मार्क-टु-मार्केट जोखिम इसमें बिल्कुल होता है.’ मान लीजिए कि आप 15 साल की अवधि के बॉन्ड खरीदते हैं मगर तीन साल बाद ही इन्हें बेचकर बाहर निकलने का फैसला लेते हैं. बेशक उस समय ब्याज दरें पहले के मुकाबले ऊपर चल रही हों मगर आपको जो कीमत मिलेगी, उससे पिछले दो साल में आपके पास जमा हुई ब्याज आय पूरी तरह साफ हो जाएगी. आपको किसी भी लक्ष्य के लिहाज से जितने साल के लिए निवेश करना है उसके आसपास की ही परिपक्वता अवधि रखें. इस तरह आप रुक-रुक कर लगने वाले मार्क-टु-मार्केट झटकों से बच जाएंगे.

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