भूलने की बीमारी अल्जाइमर लाइलाज नहीं
बलिया। बुढ़ापे में होने वाली बीमारी अल्जाइमर से लोगों में बुजुर्गों के लक्षण जागरूकता फैलाने के दृष्टिकोण से जिला अस्पताल में गोष्ठी का आयोजन गुरूवार को किया गया। जिसमें विश्व अल्जाइमर्स डे पर सीएमएम चेंबर में चिकित्सकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
जिला अस्पताल में कार्यरत फिजिशियन डा. तोषिका सिंह न कहा कि अल्जाइमार लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बुजुर्गों को अकेले छोड़ना इस बीमारी को दावत देना है। लिहाजा हमें अपने बुजुर्गों को अकेला नहीं छोडना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी बुजुर्ग में भूलने की आदत मिलती है, वह अपना रोज का कार्य ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं तो चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि ऐसे लक्षण अल्जाइमर के हो सकते हैं। डा. सिंह ने कहा कि अल्जाइमर बीमारी के लक्षण मिलने पर मरीज को किसी मानसिक विशेषज्ञ या वृद्धावस्था मानसिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। इस अवसर पर सीएमएस डा. एसपी राय, डा. रमेश कुमार, डा. बीपी सिंह, डा. आरएन सिंह, डा. अनुराग सिंह, डा.विनेश कुमार, डा. मिथिलेश सिंह, डा. अरविंद सिंह उपस्थित रहे।
अल्जाइमर लाइलाज नहीं
बलिया। बुढ़ापे में भूलने की बीमारी बढ़ती जा रही है।ं इस रोग से ग्रसित लोग अक्सर घरों में उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। जिससे उनकी बीमारी दिनों दिन बढ़ती ही जाती है। हालांकि इसकी समय से पहचान व उपचार से उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। रोजमर्रे की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन होना, रोज घटने वाली घटनाओं को याद नहीं रखना, अपना दैनिक कार्य आसानी से न कर पाना आदि लक्षण अल्जाइमर के हैं। इस तरह के लक्षण बुजुर्गों में देखने को मिलते हैं। इन लक्षणों के उत्पन्न होते ही वे उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। घर ही नहीं बाहर भी वे मजाक के पर्याय बनते जाते हैं। जिससे उनकी दिनचर्या बुजुर्गों के लक्षण पर कुप्रभाव पड़ता है और वे इस बीमारी के उस स्टेज तक पहुंच जाते हैं, जहां से उन्हें वापस ला पाना बड़ा कठिन हो जाता है। हालांकि इस रोग की पहचान शीघ्र हो जाय तो इसे ठीक किया जा सकता है। ऐसे बुजुर्गों के साथ प्यार व दुलार से पेश आने पर भी उन्हें राहत मिल सकती है। यदि इस तरह के लक्षण किसी बुजुर्ग में मिले तो उसे वृद्धावस्था मानसिक रोग विशेषज्ञ अथवा मानसिक रोग विशेषज्ञ से उपचार कराना चाहिए।
इनसेट.
अकेलापन बन सकता है कारण
बलिया। ज्यादातर समय में अकेले रहना मानसिक बीमारी को दावत दे सकता है। ऐसा स्वस्थ्य युवा या अन्य वर्ग के लोगो में भी संभव हो सकता है। लेकिन अगर बुजुर्ग ज्यादातर समय अकेले रहते हैं और उन्हें पूछने वाला कोई न हो तो वह धीरे-धीरे अल्जाइमर बीमारी की चपेट में आ सकता है। लिहाजा बुजुर्गों को अकेले छोडऩा उचित व न्याय संगत नहीं है। साथ ही समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर ऐसे बुजुर्गों के हौसला अफजाई में मदद करने से अल्जाइमर से राहत मिल सकती है।
कोट=
ओपीडी में हर माह एक-दो अल्जाइमर के मरीज आते हैं। उनका उपचार स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। लेकिन जिला अस्पताल में ऐसी बीमारी की कोई दवा पलब्ध नहीं है। उपचार करने पर दवा बाहर से खरीदनी पड़ेगी।
= डा. तोषिका सिंह, फिजीशियन, जिला बुजुर्गों के लक्षण अस्पताल, बलिया।
बलिया। बुढ़ापे में होने वाली बीमारी अल्जाइमर से लोगों में जागरूकता फैलाने के दृष्टिकोण से जिला अस्पताल में गोष्ठी का आयोजन गुरूवार को किया गया। जिसमें विश्व अल्जाइमर्स डे पर सीएमएम चेंबर में चिकित्सकों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
जिला अस्पताल में कार्यरत फिजिशियन डा. तोषिका सिंह न कहा कि बुजुर्गों के लक्षण अल्जाइमार लाइलाज बीमारी नहीं है। इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बुजुर्गों को अकेले छोड़ना इस बीमारी को दावत देना है। लिहाजा हमें अपने बुजुर्गों को अकेला नहीं छोडना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसी बुजुर्ग में भूलने की आदत मिलती है, वह अपना रोज का कार्य ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं तो चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि ऐसे लक्षण अल्जाइमर के हो सकते हैं। डा. सिंह ने कहा कि अल्जाइमर बीमारी के लक्षण मिलने पर मरीज को बुजुर्गों के लक्षण किसी मानसिक विशेषज्ञ या वृद्धावस्था मानसिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। इस अवसर पर सीएमएस डा. एसपी राय, डा. रमेश कुमार, डा. बीपी सिंह, डा. आरएन सिंह, डा. अनुराग सिंह, डा.विनेश कुमार, डा. मिथिलेश सिंह, डा. अरविंद सिंह उपस्थित रहे।
अल्जाइमर लाइलाज नहीं
बलिया। बुढ़ापे में भूलने की बीमारी बढ़ती जा रही है।ं इस रोग से ग्रसित लोग अक्सर घरों में उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। जिससे उनकी बीमारी दिनों दिन बढ़ती ही जाती है। हालांकि इसकी समय से पहचान व उपचार से उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। रोजमर्रे की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन होना, रोज घटने वाली घटनाओं को याद नहीं रखना, अपना दैनिक कार्य आसानी से न कर पाना आदि लक्षण अल्जाइमर के हैं। इस तरह के लक्षण बुजुर्गों में देखने को मिलते हैं। इन लक्षणों के उत्पन्न होते ही वे उपेक्षा के शिकार होने लगते हैं। घर ही नहीं बाहर भी वे मजाक के पर्याय बनते जाते हैं। जिससे उनकी दिनचर्या पर कुप्रभाव पड़ता है और वे इस बीमारी के उस स्टेज तक पहुंच जाते हैं, जहां से उन्हें वापस ला पाना बड़ा बुजुर्गों के लक्षण कठिन हो जाता है। हालांकि इस रोग की पहचान शीघ्र हो जाय तो इसे ठीक किया जा सकता है। ऐसे बुजुर्गों के साथ प्यार व दुलार से पेश आने पर भी उन्हें राहत मिल सकती है। यदि इस तरह के लक्षण किसी बुजुर्ग में मिले तो उसे वृद्धावस्था मानसिक रोग विशेषज्ञ अथवा मानसिक रोग विशेषज्ञ से उपचार कराना चाहिए।
इनसेट.
अकेलापन बन सकता है कारण
बलिया। ज्यादातर समय में अकेले रहना मानसिक बीमारी को दावत दे सकता है। ऐसा स्वस्थ्य युवा या अन्य वर्ग के लोगो में भी संभव हो सकता है। लेकिन अगर बुजुर्ग ज्यादातर समय अकेले रहते हैं और उन्हें पूछने वाला कोई न हो तो वह धीरे-धीरे अल्जाइमर बीमारी की चपेट में आ सकता है। लिहाजा बुजुर्गों को अकेले छोडऩा उचित व न्याय संगत नहीं है। साथ ही समाज को भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर ऐसे बुजुर्गों के हौसला अफजाई में मदद करने से अल्जाइमर से राहत मिल सकती है।
कोट=
ओपीडी में हर माह एक-दो अल्जाइमर के मरीज आते हैं। उनका उपचार स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है। लेकिन जिला अस्पताल में ऐसी बीमारी की कोई दवा पलब्ध नहीं है। उपचार करने पर दवा बाहर से खरीदनी पड़ेगी।
= डा. तोषिका सिंह, फिजीशियन, जिला अस्पताल, बलिया।
बुजुर्गों में तनाव से मैमाेरी लाॅस का खतरा
देशमें पांच में से एक बुजुर्ग किसी किसी मानसिक रोग का सामना कर रहा है। इसका कारण है लगातार मानसिक तनाव। इन बुजुर्गों को अपनी बीमारी के बारे में पता ही नहीं चलता। इसलिए जरूरी है कि बुजुर्गों में होने वाले किसी भी बुजुर्गों के लक्षण मानसिक रोग की पहचान जल्द कर ली जाए। मानसिक विकारों का इलाज होने पर बुजुर्ग काम करने की क्षमता खोने लगते हंै। लेकिन अगर इस प्राॅब्लम का पता लग जाए तो इलाज संभव है। ये बात मैक्स सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल (एमएसएसएच) के डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सचिन कौशिक ने रविवार को बुजुर्गों के लिए हुए सेमिनार में कही। बढ़ती उम्र में हताशा, एक बढ़ती महामारी विषय पर ये सेमिनार हुआ।
डॉ. सचिन कौशिक बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर माइंड फुलनेस बेस्ड तनाव कम करने के लिए माइंड फुल वॉकिंग और दूसरे ध्यान भी शामिल हैं। इन तरीकों से मानसिक रोगों को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि योगा और सीनियर सिटीजंस क्लब या सामाजिक संबंधों को बढ़ाकर मानसिक विकारों को दूर किया जा सकता है। इससे भी अगर राहत मिले तो बुजुर्गों को डॉक्टर से कंस्टेशन लेनी चाहिए।
डाॅ. सचिन कौशिक कहते हैं कि बुढ़ापे में बुजुर्गों की बीमारी के हर लक्षण की तरह मानसिक रोगों के लक्षण पहचानना भी जरूरी है। बुजुर्गों में उदासी, आसानी से थकान, पहले वाली गतिविधियों में बुढ़ापे में मन लगाना जैसे लक्षण देखने जरूरी है। इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। बुजुर्गों में खास तरह की मानसिक समस्याएं होती हैं। ऐसे बुजुर्ग अक्सर छिपी हुई हताशाओं से पीड़ित होने के साथ ही कई तरह से सिरदर्द, शरीर में दर्द, याददाश्त खराब होने जैसे गेरिएट्रिक डिस्आर्डर आते हैं।
बुजुर्गों में अकसर दिखने वाले ऐसे 12 लक्षण जो गंभीरता से लेने चाहियें
वही लक्षण जो एक युवा व्यक्ति में एक कारण से हो सकते हैं वे बुजुर्गों में दूसरे कारणों से हो सकते हैं। युवा व्यक्ति में शायद वे इतने गंभीर न हों, पर बुज़ुर्ग में वे किसी गंभीर बीमारी की ओर संकेत कर सकते हैं। बुजुर्गों में अकसर कई चिरकालिक पुरानी बीमारियाँ पहले से मौजूद होती हैं, चोटें होती हैं, उनमें उम्र की वजह से शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इन सब के कारण कभी-कभी उनमें अन्य गंभीर लक्षण स्पष्ट प्रकट नहीं होते या इतने गंभीर नहीं लगते । यदि इन लक्षणों को नजरंदाज करें, इनकी सही जांच न करें, तो इनको पैदा करने वाली बीमारियों का इलाज नहीं होता और इन से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गंभीर या घातक परिणाम हो सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि इन अस्पष्ट चेतावनी संकेतों पर ध्यान दिया जाए, इनके वास्तविक कारणों की पहचान हो, और तुरंत उचित कदम लिए जाएँ।
कोरोना के लक्षण क्या बच्चों और बुजुर्गों में अलग-अलग होते बुजुर्गों के लक्षण हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, बच्चों को भी कोरोना वायरस से खतरा है. बुजुर्गों में इस घातक वायरस के लक्षण आम लोगों से अलग हो सकते हैं
बुजुर्गों में इस घातक वायरस के लक्षण आम लोगों से अलग हो सकते हैं. आमतौर पर जुकाम, बुखार और सांस लेने की तकलीफ के तौर पर पहचाने जाने वाला वायरस बुजुर्गों में इनसे अलग लक्षण भी पैदा कर सकता है. बुजुर्ग लोगों को थकान, भूख कम लगना, कुछ समझ न आना, बैलंस बिगड़ने जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि ज्यादा उम्र के लोगों को इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और फौरन मदद लेनी चाहिए. दरअसल उम्र के साथ हमारा शरीर बदल जाता है और ऐसे में किसी बीमारी के लिए प्रतिक्रिया भी अलग हो जाती है. ज्यादा उम्र में शरीर सुस्त हो जाता है. बोन मैरो फाइटर और सिग्नल सेल्स कम बनाने लगता है. बुजुर्गों के इम्यून सेल्स धीमे काम करते हैं.
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