Anil Agarwal : क्या अमीर बनने की इच्छा रखना गलत है? इस पर वेदांता फाउंडर का जवाब अमीर बनने की इच्छा जीत लेगा आपका दिल

वेदांता (Vedanta) के फाउंडर अनिल अग्रवाल कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के स्टूडेंट्स के साथ बातचीत कर रहे थे

Anil Agarwal : वेदांता (Vedanta) के फाउंडर अनिल अग्रवाल से हाल में एक स्टूडेंट ने सवाल पूछा कि क्या अमीर बनने की इच्छा रखना गलत है। अग्रवाल ने इस पर जो जवाब दिया, इन दिनों उसकी खासी तारीफ हो रही है। अरबपति ने कहा कि भले ही अमीर बनना पाप नहीं है, लेकिन रफ्तार कम करने और दूसरों की मदद करने में कोई बुराई नहीं है।

वह कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के स्टूडेंट्स के साथ बातचीत कर रहे थे।

पैदल चलने वालों को लिफ्ट देने में नहीं है कोई हर्ज

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अनिल अग्रवाल ने लिंक्डइन पर लिखा, “मैंने उनसे (स्टूडेंट से) कहा, पैसे की इच्छा रखना और अपनी पसंद की रोटी, कपड़ा, मकान लेना गलत नहीं है। हम एक ऐसे देश अमीर बनने की इच्छा अमीर बनने की इच्छा से आते हैं जहां लोगों की ख्वाहिशें हैं-साइकिल चलाने वाले को स्कूटी चाहिए, स्कूटी पर सवार लोगों को कार चाहिए, कार चलाने वाले को और भी अच्छी कार चाहिए। पैसा कमाना कोई पाप नहीं है, लेकिन एक बार जब आपके पास अपनी फैंसी कार हो जाए तो धीमे चलने और पैदल चलने वालों को लिफ्ट देने में कोई हर्ज नहीं है।”

बड़े सपने देखने में संकोच न करें

वेदांता के बॉस ने स्टूडेंट्स को बड़े सपने देखने में संकोच नहीं करने और हमेशा विनम्र रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपने प्रोफेशनल करियर के लिए तैयार होने के साथ याद रखना चाहिए कि विनम्र रहकर सफलता का असली आनंद आता है।

गौर करने की बात है कि इस संवाद में शामिल ज्यादातर स्टूडेंट्स भारतीय थे। अग्रवाल ने उनकी प्रशंसा की और कहा, “मुझे कई बड़े सपने देखने वालों से मिलने का अमीर बनने की इच्छा मौका मिला, जिन्होंने अपनी पहचान बनाने के लिए घर छोड़ दिया। उनमें से कई कुछ कर दिखाने का सपना साकार करने के लिए भारत से आए थे।”

अमीर बनने की इच्छा है तो अवश्य पढ़ें ये कहानी

साधु ने युवक की परेशानी सुनकर कहा-मेरे पास एक विद्या है जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जाएगा कि जो भी उस घड़े से मांगोगे यह जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन यह घड़ा फूट गया उसी समय जो कुछ भी इस घड़े ने दिया होगा वह सब गायब हो जाएगा। अमीर बनने की इच्छा अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो तो यह घड़ा मैं तुम्हें दे सकता हूं और अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो तो मैं यह घड़ा बनाने की विद्या भी तुम्हें सिखा दूंगा। बोलो तुम क्या चाहते हो?

युवक ने कहा-महाराज मैं तो 2 साल ही आपकी सेवा करना चाहूंगा, मुझे जल्द से जल्द बस यह घड़ा चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूंगा और कभी फूटने नहीं दूंगा।

इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद युवक ने वह जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया और अपने घर पहुंच गया। उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर-चाकर मांगे, सभी को अपनी शानो-शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुलाकर दावतें देने लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशे में घड़ा सिर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया।

घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया। अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्या सीख ली होती तो आज मैं फिर से कंगाल न होता।

ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान-जल्दी वाला और दूसरा थोड़ा लम्बे समय वाला पर गहरे ज्ञान वाला, यह हमें चुनना होता है कि हम किस रास्ते पर चलें। ‘‘कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है।’’

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Inspirational Context: पिता की सारी अमीरी डायलिसिस पर दम तोड़ रही थी। सांसें इतनी बेहया थीं कि अमरीका में रह रहे अपने इकलौते बेटे को देखे बिना टूटने का नाम नहीं ले रही थीं। बेटा भी ऐरा-गैरा नहीं था। नाम गूगल करने पर सौ से ज्यादा वैबसाइटें खुल जाती थीं। खुलेंगी भी क्यों न ! आई.आई.टीयन जो था। अमरीका में खुद की कम्पनी, आलीशान मकान, परी जैसी पत्नी तक बहुत कुछ था। आगे-पीछे नौकर-चाकर की फौज दौड़ती थी।

हां, नौकर-चाकर से एक बात याद आई। उसे सभी नौकरों के नाम याद थे। यहां तक कि उनके बच्चों के भी। गजब की याद्दाश्त थी। किंतु इधर कुछ वर्षों से पिता का जन्मदिन याद नहीं रहा। याद भी क्यों रहे?

जब रिश्ते सामान बन जाएं और सामान चलन से बाहर हो जाए तो उनकी कोई महत्ता नहीं रह जाती। वैसे भी सामानों का भी कहीं जन्मदिन मनाया जाता है भला !

लाख चिरौरी करने के बाद और पिता की उखड़ती सांसों का हवाला देते हुए अमरीका से लाड साहब को बुलाया गया। वह भौतिकवादी था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसे क्यों बुलाया गया। उसका मानना था कि बूढ़ा शरीर एक दिन जवाब दे ही देगा। इसके लिए पहले से बुलाने का क्या मतलब। मरने के बाद जो भी करना होता है, वह तो बाद में आकर भी किया जा सकता है। यदि एक-दो दिन इधर-उधर हो भी जाता है तो क्या फर्क पड़ता है। इतनी जल्दी भी क्या है ? कौन-सी दुनिया डूबी जा रही है ? आखिर यह फ्रीजर किस दिन के लिए पड़े हैं ? उसमें रख देने से शव थोड़े न खराब होगा। यही सब सोचते हुए पिता की ओर देख रहा था।

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पिता ने आंखों के संकेत से उसे अपने पास बुलाया। नाक-भौं सिकोड़ता हुआ वह पिता के सिरहाने जाकर खड़ा हो गया। पिता ने उसे छूने का प्रयास किया।

वह अपने लड़के को जिंदगी भर की कमाई मानते थे। बेटे को हल्की आवाज में कहा, ‘‘बेटा एक बात हमेशा याद रखना। जब सीमा से अधिक सुख मिले, अपेक्षाओं से ज्यादा नए रिश्ते बनें, कल्पना से अधिक कमाई हो, आशा से अधिक पद मिले, तब कहीं न कहीं उन पर पूर्णविराम लगाने की चेष्टा अवश्य करना।’’

‘‘बिना विराम का वाक्य और बिना विश्राम का जीवन बहुत बोझिल लगता है। जवान रहते चार पैसे कमाने की इच्छा बुरी नहीं है किंतु कमाना ही जीवन बन जाए तो चार पैसे कब चार धेले बन जाएंगे, तुम्हें पता ही नहीं चलेगा।’’

‘‘ये धेले कहीं और नहीं तुम्हारी किडनी में जमा होंगे। तब सारा कमाया इन धेलों को निकालने में लगाते रह जाओगे। जैसा कि अब मैं कर रहा हूं।’’

‘‘ये धेले खराब भोजन की आदतों से कम तनाव से ज्यादा पैदा होते हैं। मैं जिंदगी भर पैसे के पीछे दौड़ता रहा जिसका परिणाम आज मैं स्वास्थ्य के पीछे दौड़ रहा हूं।’’

‘‘मैं समझता रहा कि मैं जिंदगी भर पैसा कमा रहा हूं। हद से ज्यादा पैसा सुख दे न दे, बीमारी जरूर देगा। पैसे और स्वास्थ्य के बीच मुझ से मेरा चरित्र कहीं छूट गया।’’

‘‘काश रुपए-पैसों से चरित्र खरीदा जा सकता। तब न मैं एक विफल बाप बनता और न मैं तुम्हारी परवरिश इस तरह से करता।’’

इतना कहते-कहते पिता अपने बेटे को एक पॉकेट बुक थमाने का प्रयास करने लगा। तब तक ईहलीला समाप्त हो चुकी थी। बेटे ने पॉकेट बुक को खोल कर देखा तो उस पर अंग्रेजी में लिखा था ‘वैन यू लूज यूअर मनी, यू लूज नथिंग। वैन यू लूज यूअर हैल्थ, यू लूज समथिंग। वैन यू लूज यूअर कैरेक्टर, यू लूज एव्रिथिंग।’

इतना पढ़ते-पढ़ते पुस्तक में ‘कैरेक्टर’ लिखा शब्द बेटे के आंसुओं से गल चुका था।

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अमीर बनने की कहानी दिखाई जाएगी ‘ख्वाहिश’ में

हमारी सोसाइटी दो हिस्सों में बंटी है - अमीर और गरीब। यह दोनों वर्ग इस सोसाइटी में रहनेवाले लोगों की जिंदगी को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। रहना- सहना, बोलचाल, यहां तक कि एक-दूसरे के साथ मेलजोल भी इसी पर निर्भर करता है कि हम किस वर्ग से हैं। कुछ लोगों का यह मानना है कि अमीर होने से ही खुशी मिलती है। उस खुशी को पाने के लिए वे हर वो काम करने को तैयार हो जाते हैं जिससे वे ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा सकें। मगर यह भूल जाते हैं कि उसके बदले कभी उन्हें अपनी जान भी दांव पर लगानी पड़ सकती है। यही दिखाया जाएगा नाटक ‘ख्वाहिश’ में। इसे सात्विक आर्ट्स सोसाइटी के कलाकार पेश करेंगे। यह नाटक रशियन राइटर- अंतोन चेखव की कहानी ‘द शू मेकर एंड द डेविल’ का रूपांतरण है। जिसे शिवम ने किया है। राजा सुब्रह्मण्यम, सतविंदर और शिवम ने ही इसे डायरेक्ट किया है। ख्वाहिश एक म्युजिकल नाटक है। इसमें 7 गाने हैं जो सीन के अनुसार हैं। दुर्गेश अतवाल ने इसमें संगीत दिया है।

टैगोर थिएटर में 15 अप्रैल को इस नाटक का मंचन होगा। इसे सात्विक आर्ट्स सोसाइटी के कलाकार पेश करेंगे।
नाटक की कहानी| रशिया पर आधारित यह कहानी 1920 के दौरान की है। उस जमाने के शू मेकर्स के आस-पास घूमती है। फ्योडोर जो गरीब है और अमीर बनने की इच्छा रखता है। अपने बचपन के दोस्त को 2 हफ्तों में अमीर होता देख उसे विश्वास नहीं होता। उसके इलाके के लोग तो उसे गरीबी के ताने कसते ही हैं। साथ ही उसकी बीवी भी उसे अपने दोस्त से मदद मांगने को कहती है। इसी भेड़चाल में वह अमीर बनने की इच्छा में डैवल से मिलता है जो उसकी आत्मा के बदले उसे अमीर बनाने का वादा करता है।

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